गीत/नवगीत

घातक जाल बिछाये हैं

घर – बाहर या प्लॉंट सड़क, हर जगह मौत के साये हैं।
हमने ही तो आँख मूँदकर, घातक जाल बिछाये हैं।।
साफ सफाई रखकर के, बीमारी दूर भगानी है।
जीवन जीने हेतु जरूरी धूप हवा शुचि पानी है।
वृक्षों को हम काट काटकर, बादल दूर भगाये हैं।
हमने ही तो आँख मूँदकर, घातक जाल बिछाये हैं।।
ध्यान समय का रखते हैं तब, काम समय से होता है।
जल्दीबाजी जो करता है, अपना जीवन खोता है।
दुर्घटना की रोकथाम में, पीपीई अपनाये हैं।
हमने ही तो आँख मूँदकर, घातक जाल बिछाये हैं।।
साथ मशीनों के रहकर ही, हम सब अक्सर जीते हैं।
नशा मुक्त हो शान्त हृदय से, सोते खाते पीते हैं।
होशोहवास में रहना है, सहकर्मी को समझाये हैं।
हमनें ही तो आँख मूँदकर, घातक जाल बिछाये हैं।।
बायीं दिशा देखकर ही तो, हम सड़कों पर चलते हैं।
जो नियमों को नहीं मानते, घायल होते, मरते हैं।
फर्स्टएड की ट्रेनिंग लेकर, साथी की जान बचाये हैं।
हमने ही तो आँख मूँदकर, घातक जाल बिछाये हैं।।

*डॉ. अवधेश कुमार अवध

नाम- डॉ अवधेश कुमार ‘अवध’ पिता- स्व0 शिव कुमार सिंह जन्मतिथि- 15/01/1974 पता- ग्राम व पोस्ट : मैढ़ी जिला- चन्दौली (उ. प्र.) सम्पर्क नं. 919862744237 Awadhesh.gvil@gmail.com शिक्षा- स्नातकोत्तर: हिन्दी, अर्थशास्त्र बी. टेक. सिविल इंजीनियरिंग, बी. एड. डिप्लोमा: पत्रकारिता, इलेक्ट्रीकल इंजीनियरिंग व्यवसाय- इंजीनियरिंग (मेघालय) प्रभारी- नारासणी साहित्य अकादमी, मेघालय सदस्य-पूर्वोत्तर हिन्दी साहित्य अकादमी प्रकाशन विवरण- विविध पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन नियमित काव्य स्तम्भ- मासिक पत्र ‘निष्ठा’ अभिरुचि- साहित्य पाठ व सृजन