हास्य व्यंग्य

बस अभी ठहर जाओ भाई ,जैसे अभी तक…..

बस अभी ठहर जाओ भाई ,जैसे अभी तक…..

“हुजूर, सामान्य से भी कम वर्षा हुई है।बहुत ही ज्यादा जलसंकट का सामना करना पड़ रहा है,हमें अपने गाँव में कच्चे कुंओ में उतरकर पानी भरना पड़ रहा है और वह भी गंदा पानी!अपनी जान जोखिम में डालकर पचास-साठ फीट गहराई तक उतरना पड़ता है।”
वे बोले- “ठीक है भाई,लेकिन हम अभी क्या कर सकते हैं, तुम्हें पानी तो मिल ही रहा है।”
“हुजूर, पानी साफ नहीं है, गंदा पानी पीने से बीमार हो रहे हैं।कल ही अस्पताल गये तो कोई डॉक्टर साहिब नहीं मिले।पूछने पर बताते हैं कि सब चुनाव कार्य में व्यस्त हैं।माय-बाप ,आप ही जतन करके गाँव की नल-जल योजना का काम जल्दी शुरु करवा दो।”
वे बोले- “अरे यार, पगला गए हो क्या! ठीक है, योजना आचार संहिता लागू होने के पहले स्वीकृत हो गई थी लेकिन काम तो शुरू नहीं हुआ था न! अब चुनाव आयोग की परमिशन मांगी है, मिल जाएगी तो काम भी लगवा देंगे।वैसे चुनाव आयोग भी कहाँ फुर्सत में बैठा है जो तुम्हारे इन दो-चार गाँवों की समस्या निपटाने में लगा रहेगा।वह तो बस हमारे पीछे ही पड़ा रहता है कि हमने क्या बोल दिया, क्या खर्च कर दिया और इसी तरह की वाहियात सी बातें।अभी तो उनका जोर है।चुनाव के बाद देख लेंगे।”
“तो हुजूर,गाँव में नया ट्यूबवेल ही करवा दो,कम से कम पीने के पानी की समस्या हल हो जाएगी”
वे बोले – “अरे मरवाओगे क्या।कैसी मुर्खता की बात कर रहे हो।अभी आचार संहिता के उल्लंघन में धर दबोचेंगे ,कोई नया काम तो करवा ही नहीं सकते। आचार संहिता हटते ही काम करवा देंगे।”
“लेकिन हुजूर,भूख और प्यास भी कहाँ किसी का इंतजार करती हैं, उन्हें जब लगना होती है, तभी लगती है।”
वे बोले- “अरे भाई,तुम्हारी बात से कहाँ इंकार है लेकिन यह चुनाव का रट्टा है न! पहले भी चुनाव होते थे किन्तु कभी इतनी जोर-जबर्दस्ती नहीं होती थी।हम खुद ही इनसे परेशान हो गए हैं।बस थोड़ा सा इंतजार कर लो।जैसे ही हम चुनाव जीत जाएंगे, तुम्हारी सब समस्या हल कर देंगे।”
“लेकिन हुजूर, बेटे के पास रोजगार नहीं है, अभी बेटी के ब्याह का मुहूरत निकल आया था किन्तु पता चला कि आचार संहिता के चलते मुख्यमंत्री कन्यादान विवाह योजना के तहत चुनाव सम्पन्न होने तक विवाह नहीं हो सकता।अब अच्छा मुहूरत भी दो महीने तक कैसे रोक कर रखा जा सकता है! और हाँ हुजूर, आपके कहने के बाद भी वो थानेदार रपट लिखने को तैयार नहीं है।कहता है कि चुनाव का टाइम है,मरने तक की फुर्सत नहीं है, चुनाव बाद आना।इधर पड़ोसी कल्लू रोजाना आकर गाली गलौज करता है और मारपीट पर उतारू हो जाता है।हुजूर आप ही हमारे माय-बाप हो,कुछ तो करो।”
वे बोले- “अरे यह तुम हमें हुजूर और माय-बाप तो अभी न कहो!चुनाव का टाइम है।वैसे भी हम तो तुम लोगों के सेवक ही हैं।बस,वोट अपने को ही देना।बेटे के रोजगार की व्यवस्था भी कर ही रहे हैं, लड़की भी अच्छे मुहूरत में ब्याही जाएगी, पानी की किल्लत भी दूर करेंगे ही।थानेदार को भी उसकी औकात दिखा देंगे।अभी बस दो महीने रूक जाओ।”
“ लेकिन हुजूर, यह तो वही बात हो गई कि घर में आग तो आज लगी है और आग बुझाने के लिए मानसून तक ठहर जाने की बात कही जाए।।”
वे बोले- “अरे लल्लू, तुम्हें अच्छे और सच्चे दिन चाहिए कि नहीं।हम तो घर क्या चीज है,नई बस्ती ही बसा देंगे।तुम चिन्ता मत करो,बस अभी ठहर जाओ,जैसे अभी तक ठहरते आए हो।”

*डॉ. प्रदीप उपाध्याय

जन्म दिनांक-21:07:1957 जन्म स्थान-झाबुआ,म.प्र. संप्रति-म.प्र.वित्त सेवा में अतिरिक्त संचालक तथा उपसचिव,वित्त विभाग,म.प्र.शासन में रहकर विगत वर्ष स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ग्रहण की। वर्ष 1975 से सतत रूप से विविध विधाओं में लेखन। वर्तमान में मुख्य रुप से व्यंग्य विधा तथा सामाजिक, राजनीतिक विषयों पर लेखन कार्य। देश के प्रमुख समाचार पत्र-पत्रिकाओं में सतत रूप से प्रकाशन। वर्ष 2009 में एक व्यंग्य संकलन ”मौसमी भावनाऐं” प्रकाशित तथा दूसरा प्रकाशनाधीन।वर्ष 2011-2012 में कला मन्दिर, भोपाल द्वारा गद्य लेखन के क्षेत्र में पवैया सम्मान से सम्मानित। पता- 16, अम्बिका भवन, बाबुजी की कोठी, उपाध्याय नगर, मेंढ़की रोड़, देवास,म.प्र. मो 9425030009