लघुकथा

भूत की परछाई…वर्तमान में….

कैसी हो मीरा ? अरे रश्मी तू, मस्त हूँ यार तू बता। कैसी चल रही है लाइफ ? बड़े दिनो बाद मिले हैं यार। हाँ मीरा। चल काॅफी पीते हैं वहीं बात करेंगें।

और बता, सबको खुश रखने वाली रश्मी आज डल लगने लगी ? याद है काॅलेज में तुझसे बात करके सभी को कितना अच्छा लगता था। तू एक बार बात कर ले तो सारी दुनियाँ को अपना बना ले।

हाँ मीरा, याद है, भूल से भी किसी की भावनाओं को ठेस न पहुँचे, यही सोचती रही। किसी के मन में मेरे लिये क्या था ? इसे भूलकर, ये सोचना कि उसकी भावनाओं क्यों मारा जाय ? उसे प्यार से ही उत्तर दिया। इसमें मेरी क्या गलती है ? तू बता मीरा……

अरे क्या हुआ रश्मी ? कुछ नहीं मीरा, पहले मैने जो पूछा उसे बता। काॅफी की चुस्की लेते हुये रश्मी ने कहा।

तेरी गलती नहीं है रश्मी। मैने तुझे हमेशा समझाया था कि हर बात को मुस्कुराकर छोड़ देने से भी सामने वाले की भावनाओं को बढावा मिलता है। सारी दुनियाँ तेरे नज़रिये से नहीं चलती। सबका अपना अपना नजरिया होता है। जरूरी है जिसके बारे में तू जैसा सोचे वो भी तुम्हारे बारे में वैसा ही सोचे ?
मुझे हमेशा तेरी फिक्र रहती थी कि कहीं तेरा बिंदास स्वभाव ही तुझे तकलीफ न दे, पर हरबार तेरे खुद के विश्वास के आगे झुक गयी। तुझसे ज्यादा कहती तो तुझे लगता, मुझे तेरी खुशियों से जलन है। तू मुझसे कटने लगती, दूर होने लगती।

शायद, तू सही थी मीरा। सभी के साथ प्यार से बात करना भी दुख का कारण बनता है। और वही हुआ मेरे साथ। सबको अपना बनाने के चक्कर में अपनो से भी दूर होती गयी। मैंने सबसे प्यार से बातें की पर कुछ लोग गलत समझ बैठे। कुछ मेरे लिये आपस में लड़ बैठे। मेरे काॅलेज के एक दोस्त ने, मेरे एक पुराने दोस्त को मेरे लिये गोली मार दी। वो अस्पताल में हैं और जिसने गोली मारी वो जेल में।

इस घटना से मेरे घरेलू रिस्तों में भी दरार आ गयी। आज सबके होते हुये भी अकेली हूँ। तू बता कहाँ है मेरी गलती….?

रश्मी की आँख से बहने वाले आँसू गालों से गले तक का लम्बा सफर तय कर रहे थे और मीरा उन्हें एक टक देखती जा रही थी।

सौरभ दीक्षित मानस

नाम:- सौरभ दीक्षित पिता:-श्री धर्मपाल दीक्षित माता:-श्रीमती शशी दीक्षित पत्नि:-अंकिता दीक्षित शिक्षा:-बीटेक (सिविल), एमबीए, बीए (हिन्दी, अर्थशास्त्र) पेशा:-प्राइवेट संस्था में कार्यरत स्थान:-भवन सं. 106, जे ब्लाक, गुजैनी कानपुर नगर-208022 (9760253965) dixit19785@gmail.com जीवन का उद्देश्य:-साहित्य एवं समाज हित में कार्य। शौक:-संगीत सुनना, पढ़ना, खाना बनाना, लेखन एवं घूमना लेखन की भाषा:-बुन्देलखण्डी, हिन्दी एवं अंगे्रजी लेखन की विधाएँ:-मुक्तछंद, गीत, गजल, दोहा, लघुकथा, कहानी, संस्मरण, उपन्यास। संपादन:-“सप्तसमिधा“ (साझा काव्य संकलन) छपी हुई रचनाएँ:-विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं में कविताऐ, लेख, कहानियां, संस्मरण आदि प्रकाशित। प्रेस में प्रकाशनार्थ एक उपन्यास:-घाट-84, रिश्तों का पोस्टमार्टम, “काव्यसुगन्ध” काव्य संग्रह,