पर्यावरण

पर्यावरण से मिलता सभी को निःशुल्क लाभ

मानव जीवन के लिए नींद , शांति , आनन्द , हवा , पानी , प्रकाश और सबसे ज्यादा हमारी सांसे, बेहद जरूरी है क्योंकि इनके बिना जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती। अनमोल तो ये हैं ही, पर ये निःशुल्क भी है,यही वजह है कि लोग इसकी अहमियत को अक्सर ईश्वर की कृपा समझकर भूल जाया करते हैं। जरा सोचिए प्रकृति से प्राप्त लाभ अगर पैसो से खरीदना पडे तो क्या जीवन संभव है हवा जल प्रकाश बारिश जो सभी को समान रूप से प्राप्त होती है उसके प्रति गंभीर कब होंगे ? चंद सजावट के लिए साफ सफाई के लिए कब तक पेडो को काटते रहेगे।पर्यावरण की देखरेख के लिए कोई ठोस और सुदृढ योजना आखिर कब लायी जाएगी।ऐसे कई प्रश्न है जिनके निदान ढूंढे जाने हैं।जबकि असंतुलित होते जलवायु लगातार जीवन के लिए चिंता का शबब बनता जा रहा है।
मानव विलासिता और प्रगति के अंधे दौर में प्रकृति को भूलने लगा है।थोडा सा वक्त पर्यावरण को भी चाहिये यही सोच सभी के दैनिक जीवन में आए और पर्यावरण के प्रति लोग जागरूक हों इसलिए पर्यावरण दिवस को अधिक महत्व दिया जाने लगा है। विभिन्न सेमिनारो लेखों कविताओं के जरिए भी पर्यावरण के प्रति गहरी चिंता व्यक्त की जाती है।
पर्यावरणीय सुरक्षा उपाय को दर्शाने के लिये साथ ही पर्यावरण सुरक्षा के बारे में लोगों के बीच अधिक जागरुकता बढ़ाने में लगभग पाँच दशक के गहन परीक्षण और शोध के जरिये भी आज तक हमलोग उपाय ही ढूँढ रहे जबकि पर्यावरण सुरक्षा का हल ढूँढा जाना अति आवश्यक हो गया है।पानी का घटता लेयर, मानसून कम होना, असमय बारिस ओलावृष्टि सूखा, भूकंप बढती गर्मी और ग्लेशियर का तेजी से पिघलना आदि चिता का सबब बनता जा रहा है ।
  धरती पर बढ़ती जीवन से उत्पन्न गंदगी, बढता रासायनिक उपयोग,सैन्य परीक्षण, गाडियो का धुआँ और लापरवाही का सिस्टम जैसे अनेक ऐसे कारण है जो धीरे-धीरे जीवन को मौत के करीब ले जाती हुई प्रतीत होती है।
इसलिये पूरे विश्व भर के लोगों के द्वारा एक वार्षिक कार्यक्रम के रुप में हर साल पर्यावरण दिवस को मनाया जाता है।  लगभग 195 देशों के द्वारा वैश्विक आधार पर सालाना पर्यावरण दिवस 05 जून को मनाया जाता है।
    दुनिया भर से मिली रिपोर्ट ने वायु प्रदूषण पर गहरी चिंता जाहिर की है इसके अनुसार हमलोग इतनी जहरीली हवा में सांस ले रहे हैं  कि हमारी उम्र दिन प्रतिदिन कम हो रही है।प्रदूषण का स्तर प्रायः सभी शहरो में बढ़ रहा है शहरी क्षेत्रो मे गाडियो, ईंट भट्ठो, डीजल जेनरेटरों, से उत्सर्जित धुएँ सडक ची धूल तो ग्रामीण क्षेत्रो मे रसोई के ईंधन,वहीं गोबर की कम उपयोग होने से स्वच्छ हवा प्रायः दूर होती जा रही है।वायु प्रदूषण आने वाले समय में विपत्ति के समान सबका मुँह चिढाता नजर आ रहा है।
फेफड़ो से सम्बन्धित गंभीर रोग वायु प्रदूषण के कारण होते हैं।स्वास्थ्य एवं जनसंख्या मंत्रालय के अनुसार पहले के दशक में वायु प्रदूषण विकलांगता के दसवां कारण होता था लेकिन अब यह दूसरा बडा कारण बन गया है।
जल प्रदूषण भी इससे अछूता नही है शुद्ध पेयजल से जूझ रहे अनेक शहर अपनी प्यास बुझाने के लिए गंदे पानी पीने को मजबूर है हालत यहां तक पहुँच गयी है कि कई जानलेवा रोग का कारण अशुद्ध जल का सेवन बन गया है लोग पलायन करने को विवश हो रहे हैं।
बढ़ती आबादी घटती जमीन और वनो का लगातार कटाव ने संतुलन बिगाड़ कर रख दिया है। विलासिता और विज्ञान पर निर्भरता ने लोगो को प्रकृति से दूर होने पर मजबूर कर दिया। बढता शहरीकरण और घटता गाँव ने लोगो को रोजी रोटी के लिए शहर में रहने पर मजबूर किया साथ ही प्रकृति सेवा से भी मरहूम किया है जिसका परिणाम अब स्पष्ट तौर पर दिख रहा है ।गंदगी का अम्बार लगे शहर के चौक चौराहे दूषित जल दूषित नदियाँ जो शहर की गंदगी नित्य निगल रही है आखिर कब तक स्वच्छ रह सकती धीरे-धीरे जहर बनने की राह पर अग्रसर है ।
आम तौर पर देखा गया है कि गाँव के लोग प्रकृति प्रेमी होते है वे गाँव में रहकर वृक्ष लगाते रहते हैं और सेवा भी करते हैं ताकि हर मौसम का फल उन्हें मिल सके लेकिन,शहर में वे ऐसा नही कर पाते न ही उनके पास जमीन उपलब्ध हो पाती है।उल्टा शहर आने पर गाँव में लगे वृक्ष भी सेवा अभाव के कारण सूख जाते है या खराब हो जाते हैं । प्रदूषण नियंत्रण के लिए पुनः गाँव का सदृढिकरण आवश्यक है शहर पर बढता बोझ को कम करना एक अच्छा विकल्प है लेकिन इसके लिए गाँव में ही रोजगार के विकल्प भी तलाशने होगे जो दूर-दूर तक नजर नही आती।अतःप्रकृति से मुफ्त में सभी को समान रूप से मिलने वाले जीवन के पाँच प्रमुख तत्व जिनके, किसी एक के बिना जीवन संभव नही है उनका संरक्षण करना और संरक्षण के प्रति जागरूक करना प्रत्येक नागरिक का पहला नैतिक कार्य व जिम्मेदारी होना चाहिए।
आशुतोष

आशुतोष झा

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