कविता

पर्यावरण

प्रगति है प्यारी तो,
वृक्ष से प्यार करो।
निःशुल्क सेवा देता है,
सब स्वीकार करो।।
जल जमीन हवा और प्रकाश,
जीवन के है मुख्य आधार।
चकाचौंध में खोकर न,
इन्हें बर्वाद करो।।
यह न करता भेद किसी से,
राजा हो या रंक।
समान अधिकार देता सबको
मानव हो या जीव-जन्तु।।
दिल में ठान लो अब,
दस पेड लगाओ सब।
संतुलन बिगड़ रहा है
संभल जाओ अब।।
ऐसा न कभी दिन आए
पीठ पर हवाओ के सेलेन्डर आए।
पानी मिलें सिर्फ दुकानो में
कैसे जीवन संभल पाए।
कालचक्र से भी बडा है
यह हमारा आपदा
समय से हल निकाला जाए
फिर निःशुल्क सेवा पाए।

आशुतोष झा

पटना बिहार M- 9852842667 (wtsap)