लेखसामाजिक

जनसंख्या विस्फोट: एक गंभीर चुनौती

इस नए दशक में हम एक नए भारत का संकल्प लिए आगे बढ़ रहें हैं। आज हमारी महत्वाकांक्षा भारत को एक महाशक्ति के रूप में स्थापित करने की है। हम एक बार पुणः अपने देश को विश्वगुरु के आसन पर विराजमान देखना चाहते हैं। पर यह लक्ष्य इतना आसान नहीं है क्योंकि देश में बेतहाशा बढ़ती जनसंख्या हमारे इस लक्ष्य के आगे किसी मजबूत चट्टान की तरह खड़ी हो गई है। बढ़ती जनसंख्या के फलस्वरूप देश में भूखे-नंगों की तादात, खाद्यान्न संकट, पेयजल, आवास और शिक्षा का संकट भयावह स्थिति में आ पहुंचा है। वर्तमान में भारत विश्व का दूसरा सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है। जबकि आजादी के समय भारत की जनसंख्या महज 33 करोड़ थी जो आज लगभग चार गुना तक बढ़कर तकरीबन 1 अरब 35 करोड़ के आसपास हो गई है और संभावना है कि 2050 तक देश की जनसंख्या 1.6 अरब हो जायेगी। संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक एवं सामाजिक मामलों के विभाग के ‘‘पॉपुलेशन डिविजन’’ ने ‘ द वर्ल्ड पॉपुलेशन प्रोस्पेक्ट 2019 हाइलाइट्स (विश्व जनसंख्या संभावना मुख्य बिंदु)’ के नाम से एक रिपोर्ट प्रकाशित की है और इस रिपोर्ट के अनुसार भारत 2027 के आस-पास चीन को पीछे छोड़ते हुए दुनिया में सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला देश बन जायेगा। फिलहाल भारत की जनसंख्या विश्व जनसंख्या का 17.5 फीसद है। इसके विपरीत भूभाग के लिहाज से हमारे पास महज 2.5 फीसद जमीन है और 4 फीसद जल संसाधन है जबकि विश्व के बीमारियों का 20 फीसद बोझ हमारे देश पर ही है। बढ़ती जनसंख्या के कारण देश में तेजी से खाद्य और पोषण की समस्याएं, आवास की समस्याएं, भुखमरी और अकाल, संक्रामक रोग और महामारी, शहरों और जनसंख्या के विकास पर जनसंख्या का दबाव, प्राकृतिक संसाधनों पर अत्यधिक दबाव, कृषि क्षेत्रों में कमी, जंगलों का निरंतर विनाश, वन्यजीवन सहित पर्यावरण के लिए खतरा, राजनीतिक अस्थिरता, युद्ध, सामाजिक बुराई और भ्रष्टाचार जैसी समस्याएं बढ़ रहीं हैं।

बढ़ती जनसंख्या के मुख्य कारण:
भारत में आज भी जन्म दर, मृत्यु दर के मुकाबले कहीं अधिक है। चिकित्सा विज्ञान में आए अभूतपूर्व क्रांति के बल पर जहां हमने मृत्यु दर में कमी लाने में सफलता पाई है वहीं जन्म दर को लाघव करने में हम आज भी असफल रहें हैं। भले ही जनसंख्या नीतियों और अन्य उपायों के कारण प्रजनन दर कुछ हद तक कम हुई हो लेकिन फिर भी यह अन्य देशों की तुलना में काफी अधिक है। भारत की इस बढ़ती जनसंख्या का मुख्य कारण परिवार नियोजन की कमी, अशिक्षा, स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता का अभाव, अंधविश्वास और विकासात्मक असंतुलन है।

पारिवार नियोजन की कमी:
बात अगर परिवार नियोजन की करें तो भारत में आज भी इसकी कमी एक गंभीर समस्या बनी हुई है। देश में फैली अशिक्षा, गरीबी,अंधविश्वास तथा पारिवार नियोजन के फायदें और बढ़ती जनसंख्या का परिवार तथा समाज पर पड़नेवाले दुष्प्रभाव के संदर्भ म़े जागरूकता की कमी के कारण आज भी हमारे देश में पारिवार नियोजन दूर की कौड़ी ही साबित हो रही है। आज के इस आधुनिक दौर में भी हमारे देश में लोग पारिवार नियोजन के संदर्भ में चर्चा से दूर भाग रहें हैं। खासतौर पर पुरुष परिवार नियोजन के लिए स्थायी उपाय अपनाने से बच रहें हैं और अपनी पुरुष मानसिकता के कारण वे नसबंदी से दूर भाग रहें हैं। ज्यादातर पुरुष परिवार नियोजन के लिए महिलाओं को ही आगे कर देते हैं। परिवार नियोजन की विफलता का मुख्य कारण जागरूकता की कमी ही है। कुछ हद तक इसके लिये हमारी सरकारें और व्यवस्था भी जिम्मेदार है, क्योंकि हजारों करोड़ रुपये खर्चने के बाद भी हमारी सरकारें आज भी गर्भनिरोधकों के बारे में संपूर्ण जागरूकता नहीं ला पाई हैं। इतना ही नहीं बल्कि महिला नसबंदी के बारे में भी बताने और आधुनिक परिवार नियोजन के इस सबसे सुरक्षित और लोकप्रिय तरीके के बारे में समझाने में भी हमारी सरकारी मशीनरी असफल रही है। जबकि इस समस्या से निजात पाने के लिए परिवार नियोजन के संदर्भ में सार्वजनिक जागरूकता और सार्वजनिक भागीदारी पर बल देना होगा। क्योंकि सार्वजनिक भागीदारी से ही परिवार नियोजन को सफल बनाया जा सकता है।

कम उम्र में विवाह:
हमारे देश में कम उम्र में शादी देश की अनन्य सामाजिक कुरीतियों में से एक है। आज भी हमारे देश में बड़ी संख्या में लड़के- लड़कियों की शादी उस उम्र में की जाती है जब वे पारिवारिक जिम्मेदारियों को सम्भालने के लिए सामाजिक, शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार नहीं होते हैं। ऐसे में जल्दी शादी होना और सार्वभौमिक विवाह प्रणाली के कारण देश में जनसंख्या विस्फोट काफी हद तक बढ़ रहा है। वैसे तो भारत में कानूनी तौर पर लड़की की शादी की उम्र 18 साल है, लेकिन हमारे समाज में जल्दी शादी की अवधारणा काफी प्रचलित है और जल्दी शादी करने से गर्भधारण करने की अवधि भी बढ़ जाती है। इसके अलावा भारत में शादी को एक पवित्र कर्तव्य और सार्वभौमिक अभ्यास माना जाता है जहां लगभग सभी महिलाओं की शादी प्रजनन क्षमता की आयु में आते ही हो जाती है, जिससे देश की जनसंख्या वृद्धि दर में बढ़ोतरी एक सामान्य सी बात हो चली है।

धार्मिक और रूढ़िवादी सोच:
भारत में रूढ़िवादी और परम्परावादी सोच भी जनसंख्या विस्फोट का एक अन्यतम कारण है। दरासल हमारे देश में रूढ़िवादी और परम्परावादी लोग अक्सर परिवार नियोजन के उपायों के विरोध में ही खड़े नजर आते हैं। ऐसे परिवारों में महिलाओं और पुरुषों को परिवार नियोजन में भाग लेने की अनुमति नहीं होती है, क्योंकि इन रूढ़िवादीयों का यह मानना होता है कि इंसानों को भगवान की इच्छाओं के खिलाफ नहीं जाना चाहिए। वहीं ऐसे परिवारों में कुछ ऐसे लोग भी होती हैं जो तर्क देते हैं कि बच्चे भगवान की इच्छा से पैदा होते हैं और महिलाएं बच्चों को जन्म देने के लिए ही नियत की गयी हैं। समय-समय पर मुस्लिम समुदायों के सर्वेक्षणों में यह पाया गया है कि आधुनिक परिवार नियोजन के उपायों के बारे में जागरूक होने के बावजूद भी, धार्मिक कारणों और नियतिवादी दृष्टिकोण के कारण मुस्लिम महिलाएं और पुरुष दोनों ही इसके उपयोग के विरुद्ध हैं। और ऐसी दकियानूसी सोचों के कारण ही भारत की जनसंख्या बेतहाशा बढ़ रही है और अब हम दुनिया में जनसंख्या के हिसाब से पहले पायदान पर पहुंचने से बस कुछ ही कदम दूर हैं।

शिक्षा की कमी:
भारत में जनसंख्या नियंत्रण के लिए अपनाए जानेवाले पारिवार नियोजन की विफलता का मुख्य कारण निरक्षरता ही है। चूंकि निरक्षर और गरीब परिवारों में एक आम धारणा होती है कि परिवार में जितने ज्यादा सदस्य होंगे उतने ज्यादा लोग कमाने वाले होंगे। कुछ लोग यह मानते हैं कि बुढ़ापे में देखभाल करने के लिए भी बच्चों का होना जरुरी है। दरासल ऐसे अशिक्षित परिवार बढ़ती जनसंख्या दर के कारण होने वाली समस्याओं को समझने में असक्षम हैं। और यही वजह है कि भारत अब भी गर्भ निरोधकों और जन्म नियंत्रण विधियों के इस्तेमाल में काफी पीछे है। कई लोग तो इस बारे में बात तक करने के लिए तैयार नहीं होते। निरक्षरता के कारण ही देश के अशिक्षित और गरीब तबके के लोग जनसंख्या को नियंत्रित करने के उपायों खासकर गर्भ निरोधकों और जन्म नियंत्रण के अन्य उपायों के उपयोग के विभिन्न तरीकों से अनजान हैं या फिर वे इस बारे में कम से कम जानते हैं।

पुराने और दकियानूसी आदर्श:
भारत में आज भी बेटों को परिवार का आधार माना जाता है। भारत में एक आम सोच है कि बेटे ही परिवार चलाने के लिए पैसा कमाते हैं। साथ ही इस देश में बेटों को कुलदीपक भी माना जाता है, जो आगे चलकर वंशवृद्धि के जरिए कुल को आगे बढ़ाते हैं। भारत में ऐसी ही दकियानूसी विचारधारा के चलते माता-पिता पर बेटा पैदा करने का दबाव होता है। और यही वजह है कि परिवार में लड़के के चक्कर में लड़कियों की लाइन लगा दी जाती है। जिसके फलस्वरूप देश में जनसंख्या वृद्धि एक गंभीर समस्या बनते जा रही है।

अवैध प्रवजन:
भारत की जनसंख्या वृद्धि में अवैध घुसपैठियों का भी कोई कम योगदान नहीं है। भारत में अकेले बांग्लादेश से लगभग 3 करोड़ घुसपैठियों के आने दावा किया जाता है। तो वहीं अवैध रोहिंग्या मुसलमानों की संख्या भी तकरीबन 40 हजार से अधिक होने का अनुमान है। तो काम की तलाश में नेपाल से आनेवाले लोगों की संख्या भी कुछ कम नहीं है। ऐसे में अवैध प्रवासियों की लगातार वृद्धि से जनसंख्या के घनत्व में भी बेतहाशा बढ़ोत्तरी हो रही है।

जनसंख्या के प्रभाव:
इस प्रकार से बढ़ती जनसंख्या के कारण ही आज भारत विश्व के सबसे अधिक गरीब और भूखे लोगों का देश बन गया है। इतना ही नहीं बल्कि कुपोषण से मरने वाले बच्चों की संख्या भी हमारे देश में ही सबसे ज्यादा है। आज जनसंख्या विस्फोट ही वह कारण है जिसके फलस्वरूप बेरोजगारी से देश के युवा परेशान हैं। फलतः युवा शक्ति में निरंतर तनाव बढ़ता जा रहा है, जो देश में बढ़ते हुए अपराधों का एक सबसे बड़ा कारण है। भारत में बेरोजगारों की बढ़ती संख्या के चलते आर्थिक मंदी, व्यापार विकास और विस्तार की गतिविधियां धीमी होती जा रहीं हैं, जिसके चलते देश में बुनियादी ढांचे का विकास उतनी तेजी से नहीं हो रहा जितनी तेजी से आबादी में वृद्धि हो रही है। इसका नतीजा परिवहन, संचार, आवास, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा आदि की कमी के तौर पर सामने आ रहा है। जनसंख्या वृद्धि के कारण भूमि क्षेत्र, जल संसाधन और जंगल सभी का शोषण हो रहा है। संसाधनों में भी कमी आ रही है और महंगाई दर लगातार बढ़ रही है। जनसंख्या वृद्धि के कारण देश में असमानता भी बढ़ती जा रही है। जिससे देश अपने निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने में सक्षम नहीं हो पा रहा है।

जनसंख्या विस्फोट से निजात पाने के तरीक़ेः
अब अगर हमें इन समस्याओं से निजात पाना है तो बिना देर किये हुए जनसंख्या नियंत्रण के उपायों को प्रभावी ढंग से लागू करना होगा। जनसंख्या पर नियंत्रण के लिये परिवार नियोजन के कार्यक्रमों का सही तरीक़े से प्रचार प्रसार करते हुए उन्हें लोकप्रिय बनाना होगा। देश में शिक्षा का विस्तार करते हुए जनसाधारण के मन से लड़कों का मोह हटाना होगा। उन्हें धार्मिक और रुढ़िवादी मानसिकता के बंधन से मुक्त कराकर जनसंख्या नियंत्रण के लिए जागरूक बनाने की पहल भी करनी होगी। सरकार को जनसंख्या नियंत्रण के उपायों को कारगर बनाने के लिए कम संतान उत्पन्न करने वाले दम्पतियों को सम्मानित और पुरस्कृत करने का अभियान भी चलाना चाहिए जिससे अधिक से अधिक लोग प्रोत्साहित होकर संतान उत्पत्ति में कमी लाएँ। जरूरत के अनुसार सरकारों को जनसंख्या नियंत्रण के लिए कानून बनाकर भी उसे प्रभावी ढंग से लागू करना चाहिए जिससे भारत में समस्या बन चुकी जनसंख्या विस्फोट के दुष्परिणामों से बचा जा सके। केंद्रीय एवं राज्य सरकारों को मिलकर अब अवैध घुसपैठियों पर भी कार्रवाई करनी चाहिए और वोटबैंक की पॉलिटिक्स को दरकिनार कर सभी अवैध घुसपैठियों को वापस उनके देश भेजने की पहल करनी चाहिए। यहां सभी राजनैतिक पार्टियों एवं देश के नागरिकों यह समझना होगा कि हमारी सभी समस्याओं की जड़ में कहीं ना कहीं जनसंख्या विस्फोट ही है और अब हम सबको मिलकर इससे निजात पाना होगा फिर चाहे इसके लिए हमें कोई भी कदम क्यों न उठना पड़े।

मुकेश सिंह
सिलापथार,असम।

मुकेश सिंह

परिचय: अपनी पसंद को लेखनी बनाने वाले मुकेश सिंह असम के सिलापथार में बसे हुए हैंl आपका जन्म १९८८ में हुआ हैl शिक्षा स्नातक(राजनीति विज्ञान) है और अब तक विभिन्न राष्ट्रीय-प्रादेशिक पत्र-पत्रिकाओं में अस्सी से अधिक कविताएं व अनेक लेख प्रकाशित हुए हैंl तीन ई-बुक्स भी प्रकाशित हुई हैं। आप अलग-अलग मुद्दों पर कलम चलाते रहते हैंl