लघुकथा

जोरू के गुलाम

घर में अचानक मेहमान आ जाने के कारण माँ जी राशन लेने बाजार गई थी। सालों  बाद भी लोगों ने उसे पहचान लिया । अब तो बेटा बहू ही राशन लेने लाते हैं । खैर …..जो आवश्यक सामग्री था खरीदने लगी । लोग उसे देखकर आपस में बाते करने लगे । माँ जी लोगों की बात सुनकर असहज हो गई । रास्ते में गजरे वाली ने व्यंग्य बाण छोड़ा -“आरती बहन आज आप आई हो… वो भी इतनी जल्दी…. आपके बेटे बहू नहीं आए …? बाजार का रौनक बढ़ जाता है । आपका बेटा सौ फ़ीसदी जोरू का गुलाम है । लाज शर्म नहीं है, है तो थाने का एसआई भरी बाजार में गजरे लगाता है अपने जोरू के बालों में और चुंबन कर नजरे उतारता है । राम.. राम… मुझे शर्म आती है,  गजरे बेचते ।”  माँ जी अपमान का घूंट पीकर घर पहुँची । शाम को बेटा ड्यूटी से घर लौटा । तैयार होकर अपने पत्नी के साथ निकला । माँ बोली -“बेटा जरा जल्दी आना ।” बेटा बोला -“लेकिन माँ… आपको तो पता है बाजार से मंदिर जाते हैं ,वापस आते 2 घंटा हो ही जाता है ।”

” नहीं बाजार मत जाना”
” माँ,  अगर बाजार नहीं जाएंगे तो बच्चों के लिए फल कहाँ से लेंगे?”
 “तो बेटा, बहू को कहो अपनी सेवा धर्म छोड़ें ,गरीब बच्चों को फल खिला कर क्या मिलेगा?”
 “कैसी बहकी बहकी  बातें करती हो माँ ?  पता तो है ना  आपकी बहू भी एक अनाथ ही है । दादी भी कहती है कि गरीबों अनाथों की मदद करनी चाहिए  जिनके पास बेशकीमती दुआ होती है । गरीब अनाथों कि सेवा करने से सेवा स्वयं भगवान स्वीकार करते हैं ।”
 ” हाँ बेटा फिर भी घर से कुछ बनाकर ले जाया करो”
 बेटा तो ठहरा पुलिस समझते देर न लगा । समझ गया कि माँ के चिकनी चुपड़ी बातों के पीछे कुछ वजह जरूर है ।
“माँ बाबूजी ने कुछ कहा?”
“नहीं बेटा …”
 “दादू ने …?”
“नहीं..”
 “तो दादी ने..?”
” नहीं बेटा …”
“तो फिर किसने कहा, बताओ ?”
  “बेटा वो.. गजरे वाली….”
 बेटा हँसने लगा – “अच्छा गजरे वाली आंटी ने आग लगाई है । बोली होगी एसआई होकर भी भरे बाजार के बीच अपने पत्नी के बालों में गजरा लगाता है ।” “नहीं बेटा ….”
“तो…?”  “बोली कि तुम्हारा बेटा जोरू का गुलाम है ।”
 बेटा मुस्कुराकर कहा -“माँ जब पत्नी पति की दिन-रात सेवा करती है पति के इशारों पर नाचती है तब पतिव्रता कहलाती है । वहीं अगर पति अपनी पत्नी के बातों को माने, उसे खुश रखने के लिए पत्नी की छोटी-छोटी जरूरतों को पूरी करें । दो-चार लोगों के बीच पत्नी को हँसा दे तो लोग जोरू के गुलाम समझते हैं । पत्नी मेरी है जिसके साथ मुझे पूरी जिंदगी जीना है । उसे  खुश नहीं  रखूँगा तो किसी रखूँगा माँ ।” इतना कहकर माँ के माथे को चूम लिया । माँ भी ऐसे होनहार बेटे को पाकर बहुत खुश थी ।
— भानुप्रताप कुंजाम ‘अंशु’