कविता

लो आ गया सावन

लो आ गया सावन

बरखा बरसी आसमान से
भीगे तन और मन
लो आ गया सावन।

काले बदरा लगे नाचने
चली हवा सन सन
लो आ गया सावन।

भर गये सारे ताल तलैया
नदियां रही उफन
लो आ गया सावन।

कागज की मैं नाव चलाऊं
कहता बच्चों का मन
लो आ गया सावन।

बिजली चमके आसमान में
बढ़े दिल की धड़कन
लो आ गया सावन।

वसुंधरा सर ढकती अपना
ओढ़ हरा दामन
लो आ गया सावन।

भीगी धरती बीज पड़े
पल्लवित पुष्पित अन्न
लो आ गया सावन।

— अमृता जोशी

अमृता जोशी

जगदलपुर. छत्तीसगढ़