गीत/नवगीत

गीत – जी भर मैं दुलराऊं

आओ मेरी प्रेयसि! जी भर मैं दुलराऊं।

तेरा रूप मनोहर मेरे मन की जलधारा,
तुम कुछ इतनी सुन्दर ज्यों फूलों की माला,
तेरे चलने पर यह धरती है मुस्काती,
देखकर रुप तुम्हारा किरणें भी शरमातीं ,
तुम जिस दिन आई थी मन में मैं सकुचाया,
लेकर छाया-चुम्बन कुछ आगे बढ़ आया,

आओ पास हमारे फूल यहां बिखराऊं।

चंचल सूरज की किरणें धरती रोज सजातीं,
सिन्धु लहरियां तक से बेखटके टकरातीं ,
उड़ उड़ जाते पंछी गाकर गीत सुहाना,
खिल खिल पड़ती कलियां सुन भौरों का गाना,
तुम लहराओ लाजवंती सा अपना आंचल,
मुझ पर करते छाया नव के कोमल बादल ,

छूकर कनक अंगुलियां जगती से टकराऊं ।

तेरे नयनों से जब मैंने नमन मिलाये,
उस दिन चांद सितारे धरती पर झुक आते,
बोल गईं थी कोयल कोमल-कोमल भाषा ,
देखो जी मुस्काओ, आई मंजुल आशा,
तेरी प्रीति-प्रिया यह इस पर गीत लुटाओ ,
तेरी मानस शोभा इस पर मैं लुट जाओ।

दे दो अपना आंचल जी भर के फहराऊँ,

वह चन्दन की डाली जिसके नीचे छाया,
उस दिन तुमको देखा तो क्यों मैं इतना शरमाया,
अंचल छोर उठा जब दाँतों तले दबाया ,
नत नयनों से देखा मन-मन मैं मुस्कराया,
दुनिया क्या कहती है, उसको यों ठुकराया ,
जैसे झटका खाकर कन्दुक पास न आया,

आओ लेकर तुमको नभ तक मैं उड़ जाऊँ।

— कालिका प्रसाद सेमवाल

कालिका प्रसाद सेमवाल

प्रवक्ता जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान, रतूडा़, रुद्रप्रयाग ( उत्तराखण्ड) पिन 246171