स्वास्थ्य

चीनी वायरस, कितना ख़तरनाक ?

वैज्ञानिकों के अनुसार, प्रकृति ने जिस जीव का जो भोजन निर्धारित किया है, वही उसे खाना चाहिए, मसलन कुछ सालों पूर्व ब्रिटेन में, गाय को अधिक मांस के लिए, उन्हें मांस फैक्ट्रियों में बचे-खुचे मांस को बारीक पीसकर, उनके चारों में मिलाकर, खिलाने से, उनको एक मानसिक बिमारी का रोग हुआ था, इस प्रकार की संक्रमित गायों के मांस खाने वाले, जब भयंकर बिमारियों के चपेट में आए, तब भी आज के वैज्ञानिक, उसका कोई भी निदान नहीं ढूँढ पाए, अन्ततः ब्रिटेन में लाखों गायों की भट्ठी में झोंककर, उनकी निर्मम हत्या कर दी गई। इसी तरह पोल्ट्री व्यवसाय में भी मुर्गे-मुर्गियों को ‘अभक्ष्य ‘व ‘अप्राकृतिक खाना ‘देने से समय-समय पर, उनके द्वारा एक अलग तरह की फ्लू मनुष्यों में फैलती रही है, जिसकी रोकथाम के लिए, लाखों-करोड़ों मुर्गियों को हत्या कर, उन्हें जमीन में गाड़ देने की सूचना, समाचार पत्रों में प्रकाशित होती रही है।
चीन के वुहान शहर में अभी फैला ‘कोरोना वायरस ‘से फैली, रहस्यमय बिमारी, जिसकी दुनिया में अभी तक कोई न तो प्रतिरोधक टीका है, न कोई एंटीबायोटिक दवा है, जिससे चीन में, अब तक 80 लोग अपने प्राण गँवा चुके हैं, जबकि थाईलैंड, भारत, अमेरिका, जापान और मंगोलिया जैसे देशों में, इस रोग के संक्रमण से, 750 लोग, अब तक मारे जा चुके हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार, यह रहस्यमय बिमारी भी, चीनी समाज द्वारा, अजीबो-गरीब खाने की आदतों की वजह से पैदा हुई है। समाचार पत्रों के अनुसार चीनी समाज के खाने की मीनू में, जीवित लोमड़ी, कस्तूरी बिलाव, भेड़ियों के बच्चे, मगरमच्छ, सेलामेंडर, साँप, चूहे, बिच्छू, झिंगुर, लाल पेड़ की चिंटियाँ, मोर, साही, ऊँट, समुद्री जीवों में, हजारों तरह के स्तनधारी जीवों के साथ, जीवित ऑक्टोपस के अलावा चमगादड़ भी हैं। इन्हीं जीवों की, विशेषकर चमगादड़ों से, बिल्लियां संक्रमित हुईं और उन्हीं संक्रमित बिल्लियों को, मारकर, उन्हें खाने से, यह भयंकरतम् रोग हुआ है।
चीन में ही 2002-3 में जो ‘सार्स ‘रोग फैला था, जिसमें 30 अन्य देश भी चपेट में आ गये थे, उसी जैसा यह भी ‘कोरोना वाइरस ‘से फैला रहस्यमय, रोग भी है। इस रोग में, बुखार, साँस लेने में परेशानी, सर्दी-जुकाम, खाँसी, नाक बहना, भयंकर सिर दर्द और अन्त में शारीरिक अंग काम करना बंद कर देते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन और डॉक्टरों ने इससे बचाव हेतु , साफ-सफाई, हाथ को साबुन या किसी सैनिटाइजर से धोकर ही, खाना खाने तथा विभिन्न जानवरों द्वारा प्राप्त, विशेषकर, समुद्री जीवों का माँस न खाने की सलाह दे रहे हैं। परोक्षतः, मानव समाज को शाकाहारी भोजन करने की सलाह दे रहे हैं। आशा की जानी चाहिए, कि मानव समाज, जिसका शरीर, शाकाहारी भोजन खाने के लिए ही बना है, अपना प्राकृतिक व स्वाभाविक, शाकाहारी भोजन करे और धरती के अन्य जीवों पर दया करे तथा भविष्य में ‘कोरोना ‘जैसी बिमारी की गिरफ्त में, न फंसे।

— निर्मल कुमार शर्मा

*निर्मल कुमार शर्मा

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