कविता

मधुबन

तूफ़ानों का मंज़र है,
मंझधार में है कश्ती,
डूब जायें या तर जायें,
देखें अब कैसा समंदर होगा!
दिन बीतें, पलछिन बीतें,
बीती हैं रतियाँ इन आँखों में,
गहन अंधकार से निकल कर ही,
नया इक़ सूरज फिर उदित होगा!
इन्द्रधनुष की चूनर ओढ़े,
खुशियों का हसीन दामन थामे,
हरी मख़मल का दलान होगा,
सतरँगी वो आसमान होगा!
चारों दिशाओं में सुकूँ की साँस,
बहती हवाओं में ठंडक का एहसास,
अब न कोई गतिरोध होगा,
अब न कोई उदास होगा!
नए सुर-ताल लिखेंगे फिर से,
पानियों पर अपनी अनामिका से ,
मधुरतम संगीत की गूँज होगी,
लहरें अपनी  बाहों में होगी!
काँटों पर  अब चलना होगा,
पीड़ाओं को हरना होगा,
फिर फूटेंगी कलियाँ और फुनगी,
ऐसा अपना मधुबन होगा!!
— सीमा चोपड़ा

सीमा कपूर चोपड़ा

दाहोद, गुजरात