लघुकथा

दहशत

पूरी दुनिया में अपनी दहशत कायम करते हुए कोरोना ने भारत की तरफ रुख किया । दहलीज पर ही बूढ़ी लेकिन मजबूत महिला को देखकर कोरोना चौंका । उसकी असमंजस को महसूस कर वह बुढ़िया मुस्कुराई ” तुम इस गुमान में न रहो कि अन्य देशों की तरह तुम यहाँ भी तबाही मचा लोगी । यहाँ लोग बड़े जीवट के हैं , बस भ्रष्टाचार के मारे हैं । “
” लेकिन तुम कौन हो ? और ये सब कैसे जानती हो ? “
”  मेरा नाम भूख है और भ्रष्टाचार की मदद से इस देश में लाखों लोगों का मैं शिकार करती हूँ बावजूद इसके कि देश में गोदामों में अनाज इतना अधिक है कि गोदामों में रखने को जगह नहीं और हजारों टन अनाज हर साल बरसात में फेंक देना पड़ता है । “
” तब तो तुम्हें खुश होना चाहिए ! मैं तो तुम्हारा ही काम आसान करने आई हूँ । आखिर इंसानों को उनकी गलती का अहसास हम नहीं कराएंगे तो कौन करायेगा ? “
” तुम ठीक कह रही हो । मैं तुम्हें रोक नहीं रही , बल्कि तुम्हें यह बता रही थी कि यहाँ के लोग अन्य देशों से अलग हैं और उनका शिकार करने के लिए तुम्हें मेरे सहारे की जरूरत पड़ेगी । “
लॉक डाउन के बाद सड़कों पर हजारों की संख्या में उमड़ी भीड़ को देखकर कोरोना ने उस बुढ़िया से कहा ,” तुमने सही कहा था माई ! इस देश में मेरा खौफ उतना नहीं जितना तुम्हारा है । “
और वह बुढ़िया उन हजारों की भीड़ को देखकर अपनी जबान लपलपाने लगी थी ।

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।