सामाजिक

क्या सामान्य जीवन होगा लॉकडाउन के बाद और कब तक ?

हमारी अर्थव्यवस्था ठप हो गई है और अंदेशा है कि हमारी जीडीपी अब तक के सबसे निचले पायदान को छू लेगी । क्या केवल लॉकडाउन ही एकमात्र बचाव है कि हम सब लोग अपने घरों में ही ऐसे ही हाथ पर हाथ रख कर बैठे रहें। क्या 17 मई के बाद कुछ हालात सामान्य होंगे ? या फिर से बढेगा लॉकडाउन और आखिर कब तक ? ऐसे अनेक ह्रदय चीत्कारते प्रश्न ?

वर्तमान के लॉकडाउन का सख्ती से पालन करने पर, सोशल डिस्टेंसिंग का अनुपालन करने के बाद अगर यह स्तिथि है की हर रोज आंकड़ा हजारो में बढ़ रहा है ..देखते देखते हम पचास हजार की संक्रमित संख्या के नजदीक पहुँच गए ।विश्व स्वास्थ्य विशेषज्ञों द्वारा दिए गए रिसर्च की आधार पर यह बताया गया है कि वायरस के फैलाव में कमी रहेगी या स्थिरता रहेगी बतौर जिसमें लॉकडाउन का पूर्ण अनुपालन हो और तापमान में आर्द्र संवेदनशीलता में कोई बदलाव न हो तब । यह केवल आशावादी तथ्य हैं।

जिस गति से कोरोना भारत में पैर पसार रहा है उससे संभवत तस्वीर यह है की कि जून तक कुल 15-20 करोड़ भारतीय इस बीमारी से संक्रमित होंगे और इन्ही आंकड़ो के आधार पर यह दावा किया जा रहा है कि जुलाई तक लाखों भारतीय मारे जाएंगे और 50 करोड़ से ज्यादा लोग संक्रमित हो जाएंगे। वर्तमान में भारत के अस्पतालों की व्यवस्था कितनी गंभीर है यह केवल कागजी दस्तावेजों तक ही सीमित है।भारत में केवल 70,000 आईसीयू बेड हैं और केवल 40,000 वेंटिलेटर हैं, ऎसी भयावाह हालातों में ज्यादातर लोगों को इलाज मिल ही नहीं पाएगा। दरअसल हमें पता ही नहीं है कि वास्तव में भारत में कितने लोग संक्रमित हैं। सरकार के पास भविष्य के संकमण मरीजो का कोई आंकलन नहीं है । कुछ राज्य सरकार तो सही आंकड़ो को पेश ही नहीं कर रही है । क्या लॉकडाउन के बाद उन राज्यों के लोग दूसरे राज्यों में आवा जाही नहीं करेंगे ? क्या वस्तुओ का आयात निर्यात नहीं होगा ? कहाँ कहाँ बचेंगे हम लोग ? कहाँ और कितना सैनेटाइजेसन करेंगे और कब तक ?और अगर नहीं, तो क्या गंभीर हालात होंगे, कल्पना से ही रूह काँप रही है

अगर हम मात्र मध्यम तस्वीर को समझने का प्रयत्नं करें तो इस आंकलन में जून तक कम से कम 18 करोड़ लोगों के संक्रमित होने और 18 लाख लोगों के अस्पतालों में भर्ती होने की आशंका अनुमानित की जा रही है। और यदि हम उच्च संभावना वाले आंकलन के मुताबिक कम से कम 25 करोड़ भारतीय इस बीमारी से संक्रमित हो सकते हैं और इनमें से कम से कम 25 लाख लोगों को अस्पतालों में भर्ती कराना पड़ेगा।

यह बढ़ती हुई ऐसी संख्या है जिसे नियंत्रण करना हमारे काबू से बाहर होगा । अन्य देश जो हर स्वास्थ्य के लिहाज़ से भारत से ज्यादा सक्षम है उंनके पास हमसे ज्यादा तकनीकी है फिर भी वह हालतों को नियंत्रण कर पाने में असहाय प्रतीत हो रहे हैं । न्यूयॉर्क इसका जीता जागता उदहारण हैं ।यहां तक कि ब्रिटेन के प्रधानमंत्री तक इतने बचाव के बाबजूद संक्रमित हो चुके हैं । यह तो संभव ही नहीं है की 56 दिनों के अंत में इस बीमारी को हरा देंगे और जीवन सामान्य हो जाएगा । गौरतलब है कि चीन में भी यह बीमारी पूरी तरह से खत्म नहीं हुई है। संक्रमण फ़ैलने के छ: महीनों के बाद भी ?

लॉकडाउन वायरस के फैलाव को धीमा कर देगा, लेकिन फिर इसके बाद क्या? इसका उत्तर किसी के भी पास नहीं है क्योंकि लोग उस भंयकर सच को स्वीकार नहीं कर रहे हैं । सब जानते हुए भी आँखे मूंदे हुए बैठे हैं, भारत में आखिर चल क्या रहा है?

हमारे यहां महाराष्ट्र ,दिल्ली, उत्तर प्रदेश के कई जिलो में हर रोज कोरोना धमाके हो रहे हैं । यह केवल न्यूनतम परीक्षण की आधार पर है, आंकड़े हर रोज तेज़ गाती से बढ़ रहे हैं ,अभी तो घर घर जाकर परिक्षण ही नहीं हो रहा है , जिस गति से परीक्षण चल रहा है उससे तो हम आगामी पांच सालो तक भी इस अद्रश्य राक्षस से निजात नहीं पा पायेंगे। एक तथ्य भी यह है कि हमारे यहां पॉजिटिव केसों की संख्या को छिपाया जा रहा है। आखिर कितनी संख्या को छिपाया जा रहा है? क्या भारत में वास्तव में ही इतने संक्रमित लोग हैं, जितने की हर रोज दिखाए जा रहे हैं । यदि परीक्षण सही ईमानदारी और तेज गति से हो तो आंकड़ो को देखना एक भयानक मंजर ही होगा । तो सवाल यह है कि आखिर हम टेस्ट कर क्यों नहीं रहे हैं? कुछ राज्य सरकारों से बात कर निष्कर्ष निकला है कि इसका कारण टेस्टिंग किट्स की कमी नहीं है बल्कि यह कहना भी गलत नहीं है की टेस्ट करने वाली लैब की ही भारी कमी है। कई राज्यों और जिलो में इस टेस्ट को करने के लिए एक भी प्रयोगशाला नहीं है। नमूने एक राज्य या शहर एक दूसरे राज्य या शहर भेजने पड़ते हैं। दूसरा कारण यह है कि लोग निजी प्रयोगशालाओं से परीक्षण कराने में झिझक रहे हैं , कारण आर्थिक स्तिथि भी है। प्राइवेटलैब में टेस्ट कराने में पांच हजार रुपये लगते हैं । पांच हजार का टेस्ट हर किसी के बस की बात नहीं है । दूसरी तरफ कई लैब्स का मानना है कि इतने जटिल टेस्ट के लिए पांच हजार भी बहुत कम रकम है और बिना जरूरी सैनिटाइज़ पोशाकों के वे अपने स्टाफ के जीवन को को खतरे में नहीं डालना चाहते हैं । हालिया रिपोर्ट से स्वास्थ्य और पुलिस टीम ज्यादा संक्रमित पायी गयी है। कई संक्रमण वाले स्थानों पर पुलिस ने पथराव और अन्य देश विरोधी हरकतों वाले लोगो पर मामला ही ढील में डाल दिया है।

इस सबके बाद आखिर क्या होगा ? कैसे जीवन साधारण पटरी पर लौटेगा ? कैसे गरीबी, भुखमरी , अवसादता, बेरोजगारी , दो जून के निवाले का इंतजाम ,शिक्षा,अगला सत्र जैसे हजारो प्रश्न ? कैसे यदि लाखों या करोड़ों लोग संक्रमित हो गए तो सरकार उस स्थिति से निपटेगी कैसे ?

यह वायरस ‘अदृश्य राक्षस’ है , इसकी चपेट में राजा हो या रंक सब आ गए हैं । यह सबको लगभग एक ही लाठी से हांक रहा है, इस वायरस से कितने भारतीय संक्रमित होंगे या कितने मारे जाएंगे, क्या लॉकडाउन ही मात्र समाधान हैं?

— युक्ति वार्ष्णेय “सरला”

युक्ति वार्ष्णेय 'सरला'

शिक्षा : एम टेक (कम्प्यूटर साइन्स) व्यव्साय : सी इ ओ एंड फ़ाउन्डर आफ़ "युकी क्लासेस " फ़ोर्मर सहायक प्रोफ़ेसर, हैड आफ़ कार्पोरेट अफ़ैयर्स, मोटिवेशनल ट्रैनर, करीयर काउन्स्लर , लेखिका, कवियत्री, समाज सेविका ! निवासी : जलाली, अलीगढ़ उत्तर प्रदेश वर्तमान निवास स्थान : मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश प्रकाशन : उत्तरांचल दर्पण, वसुंधरा दीप , न्यूज़ प्रिंट ,अमन केसरी, शाह टाइम्स , पंखुड़ी, उत्तरांचल दीप , विजय दर्पण टाइम्स, वर्तमान अंकुर, वार्ष्णेय पत्रिका, खादी और खाकी, न्यूजबैंच, नव भारत टाइम्स, अमर उजाला, दैनिक जागरण, जन लोकमत, पंजाब केसरी, अमर उजाला काव्य ! विधा : स्वतन्त्र लेखन शौक : इंटरनेट की दुनिया के रहस्य जानना, जिन्दगी की पाठ शाला में हरदम सीखना, पुस्तकें पढना, नए जगह घूमना और वहाँ का इतिहास और संस्कृति जानना, स्कैचिन्ग करना, कैलिग्राफ़ी, लोगो से मुखातिब होना इत्यादि |