कविता

पीड़ा में प्रकृति का मन

छिन्न भिन्न कर डाला उसको
प्रकृति के भींगे है नयन
तभी कोरोना तभी अधियाँ
आफत आई है ये गहन

मिली अमानत में हमको थी
सतरंगी प्रकृति प्यारी
छेड़खान कर कर के हमने
रंगों का कर दिया दमन

स्वर्ग से सुंदर धरती थी ये
कल्पवृक्ष हर जंगल थे
काट काट के जंगल हमने
सुंदरता का किया हवन

जंगल काटे , सागर पाटे
हिंसा और रक्तपात किया
देख रक्त की सरिता भू पे
पीड़ा में प्रकृति का मन

झूठी तकनीकी के नाम पे
भौतिकता की ख्वाहिश में
दूषित धरती, दूषित वायू
दूषित कर डाला है गगन

ईश्वर का साक्षात स्वरूप है
हरी भरी कुदरत प्यारी
अपनी संतानों का मरना
कैसे कर ले भला सहन

संभल गये तो ठीक है वरना
मिटेगी मानव की बस्ती
ये आंधी तूफा तो संदेशे है
संकट कुछ आयेंगे गहन

प्रकृति के न परेय ऋषभ है
मानव की कोई हस्ती
पर्यावरण बचाओ मिलकर
लगाओ अपना तन मन धन

— ऋषभ तोमर

ऋषभ तोमर

अम्बाह मुरैना