कविता

मजदूर

मेरे आंखों में ख्वाब नहीं हैं,

मेरे अंदर सिर्फ़ जुनून है

तुम्हारे सपनों को पूरा करता हूँ
इसी में मुझे मिलता सुकून है।
बस चाह रखता हूँ,
दो वक्त की रोटी मिले।
दर्द कितना हो मुझे ,
नहीं कोई शिकवे गिले
तुम क्या जानो मुझे?
मैं खुद में इक नूर हूँ
मैं मजबूर नहीं ,
 बस मैं मजदूर हूँ।

रवि श्रीवास्तव

रायबरेली, उत्तर प्रदेश 9718895616