गीत/नवगीत

नारि ईश्वर का स्वरूप

क्यों पुरुष को खुश करने हर समझौता करती हो,
क्या कारण है जो अपनी स्वछंदता से डरती हो।
तुम निर्भीक हो, निडर हो, है अदम्य साहस तुममे,
भान नही क्या ? कि तुम ही, सृष्टि निर्धारण करती हो।
पिता, भाई, पति, बच्चा सबको तुमने प्यार दुलार दिया,
धन्य है वे परिवार जिन्होंने उस नारि को प्यार दिया।
वरना अपमानों से भरी जिंदगी मिलती थी,
जिसने चाहे जैसा चाहा और फिर तिरस्कार दिया।
स्वाभिमान से खड़ी हुई है सबक उन्हें सिखलाने को,
जो आजाते है कायदे फतवे से अपना वर्चस्व बताने को।
लज्जित होता आया समाज, नारि के कुंठित विलाप पर,
ईश्वर को तुमने वस्तु माना, झूठी शान दिखाने को।
— मंगलेश सोनी

*मंगलेश सोनी

युवा लेखक व स्वतंत्र टिप्पणीकार मनावर जिला धार, मध्यप्रदेश