कविता

शहरों से अच्छे अपने गांव

शहरों से अच्छे अपने गांव
जहां आज भी प्यार और रिश्ते जिंदा हैं
लोग एक दूसरे की खुशी में हाथ बंटाते हैं
और दुःख में ही साथ खड़े रहते हैं
शहरों जैसे नहीं साथ या
सामने वाले घर का पता नहीं होता
तो दुःख सुख साथ की तो बात ही क्या
गाँव भी आज भी पूरा गाँव साथ खड़ा हो जाता है
वहां आज भी सादगी, अपनापन बसता है जो शहरों की चकाचौंध में लुप्त हो चुकी है।
धोती, कुर्ता , पाजामा, घाघरा चोली,
सूट अभी भी सादे लिबास हैं उनके
दाल रोटी सब्ज़ी सादा खाना
खेतों की खुली हवा
खुले खुले आँगन
शहरों जैसे डिब्बों जैसे घर
ऊंची ऊंची इमारतों में कैद
पिज़्ज़ा, बर्गर, मोमोज़, नूडल्स
न जाने क्या क्या होता खाने में
 पहनावा तो पूछो ही नहीं जी
और ताज़गी के नाम पर सिर्फ प्रदूषण
तभी तो सौ बात की एक बात
शहरों से अच्छे अपने गाँव
हो चाहे बात रिश्तों की या ज़िन्दगी की।।
— मीनाक्षी सुकुमारन

मीनाक्षी सुकुमारन

नाम : श्रीमती मीनाक्षी सुकुमारन जन्मतिथि : 18 सितंबर पता : डी 214 रेल नगर प्लाट न . 1 सेक्टर 50 नॉएडा ( यू.पी) शिक्षा : एम ए ( अंग्रेज़ी) & एम ए (हिन्दी) मेरे बारे में : मुझे कविता लिखना व् पुराने गीत ,ग़ज़ल सुनना बेहद पसंद है | विभिन्न अख़बारों में व् विशेष रूप से राष्टीय सहारा ,sunday मेल में निरंतर लेख, साक्षात्कार आदि समय समय पर प्रकशित होते रहे हैं और आकाशवाणी (युववाणी ) पर भी सक्रिय रूप से अनेक कार्यक्रम प्रस्तुत करते रहे हैं | हाल ही में प्रकाशित काव्य संग्रहों .....”अपने - अपने सपने , “अपना – अपना आसमान “ “अपनी –अपनी धरती “ व् “ निर्झरिका “ में कवितायेँ प्रकाशित | अखण्ड भारत पत्रिका : रानी लक्ष्मीबाई विशेषांक में भी कविता प्रकाशित| कनाडा से प्रकाशित इ मेल पत्रिका में भी कवितायेँ प्रकाशित | हाल ही में भाषा सहोदरी द्वारा "साँझा काव्य संग्रह" में भी कवितायेँ प्रकाशित |