कहानी

एक दुल्हन की मौत…

क्या… क्या.. कहा ठाकुर भानू प्रताप की पुत्र वधू ने पंखे से लटक के अपनी जान दे दी… पर क्यों? “

“वो तो कल रात को ही ब्याह कर आई फिर ऐसा क्या हो गया की पहली ही रात दुल्हन ने आत्महत्या कर ली! ” किशोरी लाल के मुंह से निकली ये बातें काना फूसी होते होते पूरे गांव तक पहुंच गई!
धीरे धीरे भीड़ ठाकुर भानू प्रताप के हवेली की तरफ बढ चली, पूरे गांव के हर घर से कोई ना कोई औरत मर्द उस दुल्हन की मौत के कारण को जानने को उत्सुक थे! कुछ लोगों का कहना था की ठाकुर भानू प्रताप का बेटा नामर्द था और इस वजह से उसकी शादी भी नही हो रही थी, ना जाने ये अफवाह थी या हकीकत… पर ये बात गांव के बच्चे बूढे की जुबान पर थे! चर्चा गर्म थी की इस लड़की के मां बाप को ठाकुर भानू प्रताप ने बहुत सारे रूपये दिए तब लड़की का बाप अपनी बेटी का ब्याह इसके बेटे के साथ किया.. यानि लड़के वाले के तरफ से लड़की के पिता को दहेज दिया गया, दूसरे शब्दों में गांव वालों का कहना था उन्होनें अपने बेटे के लिए दुल्हन खरीदा है! शायद दुल्हन को पहली ही रात में पति के नामर्द होने की बात पता चली और बेचारी ये सदमा बर्दाश्त नहीं कर सकी और मौत को गले लगा लिया! कुछ लोग कह रहे थे की दुल्हन का किसी और से चक्कर था, उनसे शादी नही होने के कारण बेचारी ने ये कदम उठाया! जितनी मुंह उतनी बाते!
ठाकुर भानू प्रताप के दरवाजे पर अच्छी खासी भीड़ ईकट्ठा हो गई थी! किसी ने थाने को खबर दे दी, और कुछ ही देर में एक गाड़ी फोर्स के साथ उस इलाके का दरोगा खुद ही पहुंच गया!
दुल्हन के कमरे का दरवाजा अंदर से बंद था, दरवाजा तोड़ कर जब पुलिस अंदर पहुंची तो देखा कि दुल्हन की बॉडी पंखे से लटकी हुई थी! पुलिस ने उसकी नब्ज टटोली, और फिर जब संतुष्ट हो ग़या की उनकी मौत हो चुकी है, तब घर में नजरें इधर उघर दौराइ, आम तौर पर पुलिस जब किसी सुसाईड केस की जांच करने जाती है तो उसकी पैनी निगाह किसी ऐसे पत्र या चीज की तालाश में रहती है जिससे मरने वाले के मौत का कारण पता चल सके!
कमरे में दुल्हन के बेड पर एक डायरी रखी थी, डायरी के बीच कलम भी था, पुलिस वालों ने दोनों चीज अपने कब्जे में किया! लाश को उतारकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया, और पलिस ने सबसे पहले उसके पति से पूछा -” रात में तुम तो दुल्हन के पास ही सोए होंगे ना फिर वो कैसे यह सब की, और दरवाजा भी अंदर से बंद था, तुम कब निकले थे उसके पास से… या फिर दुल्हन के पास सोये ही नहीं थे?
भानू प्रताप के बेटे हरिशंकर प्रताप ने अटकते हुए कहा-” जी मैं तो रात मैं अपनी पत्नी के पास ही सोया था, करीब एक बजे मैं उठा और बाथरूम गया, मेरी नई नवेली दुल्हन ने कमरे का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया, मैं जब वापस आकर दरवाजा खोलने को कहा तो बोली – आप उधर ही कहीं सो जाओ मैं बहुत थकी हूं मुझे नींद आ रही है! मैने बहुत कहा पर वो दरवाजा नही खोली… फिर में हॉल में सोफे पर ही सो गया, सुबह जब वो दस बजे तक दरवाजा नहीं खोली तब खिड़की से जा के देखा तो वो पंखे से लटकी हुई थी! ”
दरोगा जी की पुलिसिया आंखें ताड़ गयी की यह बंदा जो अटक अटक कर बोल रहा है, वो सरासर झूठ बोल रहा था! बात कुछ और भी है, पर वह पहले दुल्हन की डायरी पढना चाहता था अतः उसने मृतका के पति हरिशंकर को भी जीप में बिठाकर थाने ले गया!
थाने में आकर वह कुर्सी पर पसरकर बैठ गया और उस डायरी को निकालकर पढना प्रारंभ किया-

मेरा नाम नेहा है! मेरी मम्मी ने बड़े प्यार से ये नाम दिया था मुझे, पर मैं बहुत अभागन निकली ! जन्म के छह वर्ष बाद ही मां को खो दिया! मां के जाने के बाद पिता नई मां ले आए, उस वक्त मुझे लगा नई मां का प्यार भी मेरी अपनी मम्मी के तरह ही होगा! पर जल्द ही मेरी सारी गलतफहमी दूर हो गई! मैं बड़ी होती जा रही थी, पढने का बड़ा शौक था मुझे, पिता ने पास के स्कूल में दाखिला करवा दिया था! मैं स्कूल से आकर मम्मी के कहे अनुसार घर का हर वो काम करती फिर जब पढने बैठती तो ना जाने क्यों उसे मेरा पढना अच्छा नहीं लगता! मुझे अपने स्कूल के होमवर्क को पूरा ना करने देने की मानो कसम खा रखी हो.. मेरी नई मां हमेशा चाहती की स्कूल में मुझे पिटाई लगे और मेरे सर से पढाई का भूत उतर जाए! अब मैं रात को सोते टाइम अपना पढाई करना शुरू कर दी!
मेरी पढाई में मन लगता देख पिता ने मुझे ट्यूशन लगवा दिया, उस वक्त मेरी उम्र बारह साल की थी! और सच कहूं तो एक लड़की जिसके सर पर मां का साया नही, पिता की अच्छी देखभाल नहीं ऐसी लड़की का जवान होना समाज के लोंगों के लिए एक वरदान साबित हो जाता है! इस समाज में लोगों की मानसिकता पर घिन्न आती है मुझे, एक लड़की का शोषण किस हद तक किस किस रूप में किया जाता है ये आप को शब्दों में बयां नहीं कर सकती! मुझे बारह साल की उम्र में पहली बार पता चला की समाज में लड़की बनकर पैदा लेना कितना बड़ अभिषाप है, लोगों की गंदी नजर से खुद को बचाती में जब ट्यूशन सेंटर जाती तो वहां शिक्षा के नाम पर बच्चियों को विभिन्न बहानों से यहां वहां हाथ लगाना मैने अपनी आंखो से देखा और झेला!
हमारे टीचर जो मेरे लिए बेहद सम्मानित व्यक्ति थे, उसने भी मौके का फायदा उठाना चाहा, अकेला पड़ने पर छेड़छाड करना शुरू कर देते छोटी मोटी गलतियां करने पर पनिशमेंट के नाम पर एकांत में ले जाकर शरीर के उन अंगो को छूते दबाते जहां छूने का उसे कतई अधिकार नहीं था! आखिर ये सब कब तक सहती! मैने ट्यूशन जाना ही छोड़ दिया आखिर खुद की इज्जत बचाकर तो रखना था ना!
स्कूल से आने के बाद घर के सारे काम करती, मम्मी की डांट फटकार और मार को सहती रात को देर रात तक जगकर अपनी पढाई करती, किसी तरह दसवीं कक्षा में गई थी मैं, उस वक्त मेरी उम्र सोलह साल की थी! मैं अपने इक्जाम की तैयारी में लगी थी! मेरे घर पर उस दिन मेरी नई मां के भाई और उनके एक दोस्त आए हुए थे! उन लोगों की खातिरदारी के लिए मेरी नई मां ने आज स्कूल ना जाने का हुक्म सुना दिया ..
मेरी इतनी हिम्मत नहीं की मां की बात काट देती क्योंकि इन दिनों पिता भी ज्यादातर मां की बातों का ही समर्थन किया करते थे!
मैने महसूस किया कि जब भी मैं नाश्ता पानी ले कर अपने मामा और उनके मित्र के पास गई वे दोनों ही मुझे गंदी नजरों से देखते थे, मामा के मित्र ने तो कई बार पानी लेने के बहाने जानबुझ कर मेरे हाथों और बाहों को छू लिया था, जिसे मैं नजरअंदाज कर दी! लड़कियों को विधाता ने ये शक्ति तो दे दी की उसकी और गंदी नजर से देखने वाले का वे इरादा भांप लेती है, पर उन्हें समाज के ऐसे गंदी मानसिकता वाले लोगों से लड़ने की शक्ति क्यों नहीं प्रदान की??
मैं उन घटनाओं को याद करके आज भी कांप जाती हूं! उस रात मेरे मामा और उनके मित्र ने एक बेचारी नन्हीं सी कली को मसल दिया था! और इन सब कार्यों में मेरी नई मां का सहयोग हासिल था!
उस रात करीब दस बजे मैं खाना पीना बना कर सबको खिलाकर खुद भी खा पीकर अपने कमरे में आई और दरवाजा अंदर से बंद करके पढ रही थी! कुछ देर पश्चात मेरी नई मां ने आकर कहा की मैं गेस्ट रूम में एक जग पानी और गिलास जा के रख दूं, मैने कहा मैं नही जा सकती पढाई कर रही हूं तो वो बुरी तरह चिल्लाने लगी, और गंदी गंदी गालिया देने लगी थी! मैं चुपचाप उठी और पानी का जग ले कर गेस्टरूम में गई! मामा और अनके मित्र एक ही बेड पर लेटे थे मुझे देखते ही दौनो उठकर बैठ गए, मैं टेबल पर जग रखकर वापस दरवाजे की और बढी की किसी ने दरवाजा बाहर से बंद कर दिया, मैं समझ गई की मेरी नई मां और इन दोनों की शाजिशों में मैं फंस चुकी हूं! मैं जोर से चिल्लाई पर मेरे मामा के मित्र तब तक मेरे करीब आ गए थे उन्होनें सख्ती से मेरे मुंह को अपने हाथों से दबा दियाऔर मुझे कसकर पकड़ लिया, उसकी मजबूत पकड़ से निकलने की असफल कोशिश करती रही पर कायमयाब ना हो सकी! दो भूखे भेड़िये के बीच फंसकर रह गई मैं! उस रात को मैं जीवन में कभी याद नहीं करना चाहती थी! उन दरिंदों ने जो कुछ किया मेरी मां के सहयोग से किया! सुबह में मेरी मां का उल्टा मेरे उपर इल्जाम था की मैं पानी देने उसके कमरे में गई और उन लोंगो से जबरदस्ती अपने जिस्म की आग बुझाने को मजबूर की, मेरी मां उल्टा मुझे ही इल्जाम लगा रही थी,  पापा को भी वहीं बात पता चली जो मां बोली, पापा ने सिर्फ इतना ही कहा की अब इसकी शादी करवाना जरूरी हो गया है!
गांव के कुछ औरतों को भी मां ने वहीं बातें बताई की मैं अपनी जवानी संभाल नही पा रहीं हूं, और अपने ही मामा को मजबूर करके उसके साथ गलत हरकत की हूं! गांव की औरतों के सामने तक जाने लाईक नहीं छोड़ा गया मुझे! मेरी मां मेरे साथ इतनी घिनौनी हरकत करेंगे पता ही नही था!
मां अब जल्द से जल्द मेरी शादी किसी भी लड़के से करके मुझे अपने घर से विदा करना चाहती थी, शादी के लिए जहां तहां बात भी चली! फिर मां को मेरे उसी मामा ने जिसने मेरा रेप किया था, बताया कि विलासपुर के ठाकुर भानू प्रताप के बेटे से अगर इसकी शादी करवा दोगी तो दहेज नहीं देना परेगा उल्टे उधर से ही दहेज मिलने की संभावना है, क्योंकि ठाकुर भानू प्रताप के बेटे नामर्द है ऐसी अफवाह फैली हुई है और कोई भी उसके खानदान में रिश्ता नहीं जोड़ना चाहता!
बस फिर क्या था, आननफानन में बात तय हो गई, बहुत सारे रूपये लेकर मेरे माता पिता ने मुझे बेच दिया, लोगों को दिखावे के लिए बारात के साथ आकर बकायदा सारी रस्मों के साथ मेरी शादी कर दी गई! मैं लाख विरोध करती रही पर मेरी बाते किसी ने ना सुनी! अंत में मैं इसे ही अपनी किस्मत समझकर अपनी ससुराल आई, सोची यहां अच्छे से रहकर यहां के लोगों का दिल जीत लूंगी!
पर शादी की रात ही एक दुल्हन के साथ यहां भी छल हुआ! ठाकुर भानू प्रताप के नामर्द बेटे के साथ शादी कर के भी मैं खुश ही रहती, पर शादी की रात मेरे पति ने मुझसे कहा की उनके बारे में जो अफवाह फैली है वो सच ही है, पर मुझे उन अफवाहों को खत्म करना है, लोगो को बताना है कि मैं नामर्द नहीं हूं, इसके लिए लोगों को सबूत चाहिए और सबूत तुम दे सकती हो… ”
मैने कहा – ” बताइये मैं ऐसा क्या करूँ कि आपके माथे से नामर्दी का दाग मिट जाए! ”
मेरे पति ने कहा – “मुझे बच्चा पैदा करके दो!”
मैने कहा -” वह तो आपके सहयोग से ही होगा ना, ऐसे कैसे मैं बच्चा दे सकती हूं आपको, हां ये हो सकता है कि हमलोग साल दो साल के लिए कहीं बाहर चलते है, वहां कोई नवजात शिशु को गोद ले लेंगे, फिर हम दोनों यहां आकर उसका पालन पोषण करेंगे, और मैं सबको ये कहूंगी ये मेरे पति का बच्चा है, आपके माथे से बदनामी का दाग मिट जाएगा.. और हमें बच्चा भी मिल जाएगा! ”
उन्होनें गुस्से में कहा -” ठाकुर भानू प्रताप के खानदान का वारिस कोई आनाथालय का बच्चा नही हो सकता, वो इसी खानदान का खून होगा, और तुम्हें यहीं रह के पैदा करना है, कैसे करना है वो तुम सोचना छोड़ो, तुम्हें सिर्फ मेरा सहयोग करना है, मैं और मेरे पिताजी पहले ही सोच चुके है, मैं तो उन कार्यों में सक्षम हूं नहीं जिससे तुम गर्भवती हो सको, पर मैने वो सारा जुगाड़ कर रखा है जिससे तुम गर्भवती भी हो जाओ, इस खानदान को वारिस के रूप में उसी का खून मिल जाए,और मेरे माथे से नामर्दी का वो कलंक भी मिट जाए!”
” मैं समझी नही… ये सब कैसे होगा..? ”
सब अभी हो जाएगा तुम बस सहयोग करना..
इतना कहकर मेरे पति कमरे से बाहर चले गए, ततपश्चात मेरे कमरे में एक अधेर उम्र के शख्स ने प्रवेश किया! उस शख्स को मैं अपने ससुर के रूप में जानती थी! वे ठाकुर भानू प्रताप ही थे जो बेटे के जाने के बाद मेरे कमरे में आए थे! एक बार फिर वहीं सब हुआ मेरे साथ! वहां बाहर से दरवाजा बंद करने वाली मेरी सतौली मां थी, यहां मेरा पति! वहां कमरे में मेरे मामा और उनके मित्र थे, यहां मेरे ससुर… इसने भी वही किया जो पहले ही मेरे मामा ने मेरे साथ किया!
दर्द और बेबसी का आलम ये की मैं यह सदमा बर्दास्त नहीं कर पाई, मैं बेहोश हो गई, मेरे ससुर ने बेहोशी की हालत में भी मेरे बदन को नोचता रहा, मेरी हालत का अंदाजा आप लगा सकते है!
जब मुझे होश आया, रात के दो बज रहे थे! मेरे बदन पर एक भी कपड़े नही थे, मेरा अंग अंग दुख रहा था! मैने अपने कपड़े पहने, दुल्हन का लिबास! जी हां वापस दुल्हन बनी! कमरे का दरवाजा खुला हुआ था, मेरे नामर्द पति हॉल में एक सोफे पर बेसुध सोए पड़े थे! मैं वापस कमरे में आई कमरे को अंदर से बंद किया, अपनी डायरी निकाली ये सब लिखने लगी… क्योंकि अब मैने फैसला कर लिया है कि मैं अपने नामर्द पति के साथ जीवन तो बिता सकती थी पर अपने ससुर की पत्नी बन कर नहीं… पता नहीं मेरा ये फैसला सही है या नहीं पर जितना कुछ मेरे साथ बीता उस को याद करके मैं जीवन नहीं जी सकती, अतः मैने खुद को खत्म करने का फैसला कर लिया है, मरते मरते मेरी आखिरी इच्छा यही है की मेरी मौत के जिम्मेदार सभी लोगो को सजा मिले!
अलविदा…
– अभागिन नेहा
डायरी पढकर दरोगा की आंखों में खून उतर आया, उन्होने थाने के मुंशी को बुलाया और डायरी से छांटकर कुछ नाम लिखकर दिए और कहा -” मुशी जी इस डायरी को सुसाइड नोट मानकर इसके आधार पर इन सभी लोगों के खिलाफ फौरन एफआईआर दर्ज कीजिए ,इन सभी को अरेस्ट करके थाने मंगवाइये… ये सभी इस मासूम दुल्हन के मौत के जिम्मेदार हैं, इन सबको कड़ी से कड़ी सजा दिलवाना ही मेरा लक्ष्य है!

— ओम प्रकाश ‘आनंद’

ओम प्रकाश 'आनंद'

मेरा पूरा नाम ओम प्रकाश राय है। मैं मूल रूप से बिहार के मधेपुरा जिले (गांव - गोठ बरदाहा) का रहने वाला हूं। मेरी जन्म तिथि 6 मार्च 1985 है। मैने ग्रेजुएशन (Zoology Hons. ) तक की पढाई की है जो साल 2008 में पूरी हुई। हिंदी साहित्य पढने और लिखने में रूचि शुरू से ही है। मैं अपने प्राइवेट नौकरी के दौरान मिले खाली समय का उपयोग लिखने व पढने में करता हूं। मेरी लिखी रचना पर आपके सुझाव, शिकायत और अन्य प्रतिक्रिया का स्वागत है। मेरी अन्य रचनाएं आप प्रतिलिपि पर भी पढ सकते है।