मुक्तक/दोहा

बरगद और बुजुर्ग

बरगद और बुजुर्ग को मानता अब कौन है?
वक्त के चक्र को भला जानता कब कौन है?
अहमियत इन दोनों की कभी खत्म नहीं हो सकती,
मगर वक्त रहते इनको पहचानता भला कौन है?
सदियों से जनमानस‌ के हृदय में प्रेम का बीज बो रहे हैं|
बूढ़े रीति-रिवाजों और परम्परा को अपने काँधे पर ढो रहे हैं|।
कौन कहता है कि इन्हें जीने का सलीका नहीं आता?
सच है कि हम आधुनिकता की अंधी दौड़ में रो रहे हैं||
भलेमानुस!अब भी वक्त है सुधर जाओ तो अच्छा होगा|
बुरी आदतें अगर आज ही बदल डालो तो अच्छा होगा||
वरना कौन है जो जानता है कुदरत का तमाशा
भला किस रूप में कब, कहाँ और कैसे होगा?
बरगद की तरह छायादार बनो और थकान मिटाओ,
बुजुर्ग की तरह हृदय-उदार रखो, प्रेम के गीत गाओ||
जीवन अत्यंत अमूल्य हैं इसे खूब हँसकर बिताओ,
बूढ़ी आँखे तक रहीं हैं, पास बैठो, तनिक बतियाओ||
— राजेश कुमार

राजेश कुमार

सहायक अध्यापक त्यागी इण्टर कॉलेज इस्माइलपुर , प्रयागराज नौवापुर, मझिगवाँ, प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश सम्पर्क सूत्र-8057242930