कविता

वो पहला पन्ना

तुम मेरी किताब का वो पहला पन्ना हो,
जब खोलती हूँ किताब तो,
तुम ही नज़र आते हो।
सांझ कहीं भी ढले, पर हर
सुबह तुम ही याद आते हो,
ये वो किताब है, जिसमें अल्फाज़
तो नज़र नहीं आयेंगे,
पर वो गीत, गजल,
छन्द, अलंकार भरपूर हैं,
तुम मेरी पहली शायरी हो, जो बन्द है
पर नगमों से भरे श्रृंगार का संगम है।
आते जाते बहुत पन्ने पलटे पर बिना
वो पहले पन्ने के सारी किताब खाली थी,
छन्द अलंकार बहुत थे पर वो प्रेम रस
कहीं न था, तुम मेरी वो पहली किताब हो।।

सन्तोषी किमोठी वशिष्ठ

स्नातकोत्तर (हिन्दी)