सामाजिक

घर को लगा दी आग घर के चिरागों ने

देश के कुछ घरों के चिराग ही बलात्कार की घटनाओं के लिए दोषी हैं। भारतीय घरों में बेटों को वी आईं पी सुविधा मिलती हैं। बेटों को भी बेटियों के समान अनुशासन में रखने की आवश्यकता है। उनकी गतिविधि आचरण व्यवहार चरित्र पर नियंत्रण रखने की आवश्यकता है। बेटों से भी प्रश्न करने होंगे। घर लौटने का समय निश्चित करना होगा। बेटों के फ्रेंड्स के बारे में भी जानकारी रखनी होगी। कहां क्यों कब किस के पास गए थे। हर लड़की की रक्षा करने का वचन दिलाना होगा। निर्मल पवित्र निष्कलंक चरित्र की शिक्षा देकर बेटों से शपथ पत्र भरवाना होगा कि किसी भी लड़की के साथ गलत व्यवहार आचरण नहीं करेंगे। नैतिक मूल्यों एवं शिक्षा का सहारा लेकर उन पर भी वही नियम बंधन कानून लागू करने होंगे जो बेटियों पर किए जाते हैं। बेटा हो अथवा बेटी उनके गलत आचरण पर माता पिता को ही उत्तर देना होता है। जिस प्रकार बेटी के लिए सजग सतर्क सावधान रहते हैं वहीं सब बेटों पर भी लागू करने होंगे। उन्हें कोई अतिरिक्त छूट नहीं देनी होगी। घर के चिरागों का वी आईं पी स्टेटस समाप्त करना होगा। वरना तारीख स्थान पीड़िता पीड़ा देने वालों के नाम बदलकर हम बलात्कार के समाचार सुनते पढ़ते रहेंगे सोशल साइट्स पर आक्रोश निकालते रहेंगे मोमबत्ती मार्च निकालते रहेंगे। ज्ञापन देते रहेंगे। एक दूसरे पर दोषारोपण करते रहेंगे। घर की आग तो घर के चिराग लगा रहें हैं। पीड़िता बेटी रात के अंधेरे में पुलिस द्वारा राख में परिवर्तित कर दी जाएगी। इस प्रकार के कलंक को मिटाने के लिए हर एक को अपने अपने बेटों को संभाल कर अंकुश नियंत्रण में रखने की आवश्यकता है। सुबह का भूला शाम को भी घर लौट आए तो उसे भूला हुआ नहीं कहते। काश हम सब को समझ आ सके तो हम अपने समाज पर भविष्य में इस प्रकार के कलंक लगने से बचा सकते हैं। इति।

— दिलीप भाटिया

*दिलीप भाटिया

जन्म 26 दिसम्बर 1947 इंजीनियरिंग में डिप्लोमा और डिग्री, 38 वर्ष परमाणु ऊर्जा विभाग में सेवा, अवकाश प्राप्त वैज्ञानिक अधिकारी