लघुकथा

लघुकथा – प्रकाशपुंज

“लगता है दादू की उल्टी सांस चल रही है, पापा ! डॉक्टर को खबर किजिये ।”
“नहीं ; अब डॉक्टर नहीं पंडित को खबर करने का वक्त आ गया है । पता नहीं पापा के मन में कौन सी अभिलाषाएं अधूरी हैं, जिनकी वज़ह से इनके प्राण कंठगत् हैं । कितनी पीड़ाएं झेली हैं इन्होंने ! फिर भी प्राण नहीं निकलते ।”
कर्नल राज चुपचाप आँखें बंद किये बेटे एवं पोते की बातें सुन रहे थे ।
उन्हें अक्सर अपनी बेबसी के पल याद आते थे जब कारगिल युद्ध में बंकरों को नेस्तनाबूद करती भारतीय सेना आगे बढ़ती जा रही थी ।
अचानक एक धमाका ! होश में आने पर खुद को बिस्तर पर पाया था । शरीर से लाचार एवं दिमाग से तंदुरुस्त ! इच्छा हुई तुरंत अपनी जीवन लीला अपने हाथों समाप्त कर लें ।
लेकिन चाहकर भी अपनी बेबसी से आप ही मुक्ति असंभव है यह उन्हें महसूस हुआ ।
अक्सर अपने आपसे सवाल—
“हे माँ भारती ! क्या मैं इतना कपूत हूँ ? शरण देने में क्यों देर लगा रही हैं ?”
जन्म-मरण जीवन में एक ही बार होता है,लेकिन आप हमें तिल तिल कर मार रही हैं ?”
जब भी कोई अपराधी या बलात्कारी को सरकार साक्ष्य के अभाव में रिहा करती है ,उस दिन मैं मरता हूँ । आतंकवादियों के आतंक से जब धरा थर्राती है, उस दिन भी मैं मौत की दूआ आपसे माँगता हूँ । आखिर मेरे सांसों की गिनती क्यों भूल जाती हैं माँ ? आप बताओ और कितने दिनों तक मारती रहोगी ?”
रोना चाहते हैं बिलखना चाहते हैं, चींख चींख कर संविधान एवं सरकार को कटघड़े में खड़ा कर न्याय दिलाना चाहते हैं । लेकिन हमारी आवाज अंदर ही घुट कर रह जाती है क्यों ?
सब कहते हैं मैं कोमा में हूँ सुन सकता हूँ, समझ सकता हूँ, लेकिन किसी से बातें नहीं कर पाता हूँ ।
ओह! लगता है फिर मुन्ना हमारी ही बात कर रहा है ! फिर से सुनने की कोशिश पोता बोल रहा था–
“पापा आपने गौर किया ! दादू को इच्छा मृत्यु का वरदान आखिर माँ भारती ने दे ही दिया, सारी धाराएं समाप्त हो गई । धरती का स्वर्ग जन-जन के लिये खुल गया है ।”
अरे वाह ! यह तो बहुत अच्छा हुआ ।
खुद से सवाल क्या मैं जिंदा हूँ ?
क्यों जिंदा हूँ….अनेकों सवाल… राम नाम सत्य है ? ये किसने कहा ! किसकी मौत हो गई ?
ऐसा लगा मानों पालकी में झूलते हुए हवा में तैर रहे हैं । छपाक ! शीतल गंगाजल ! ये क्या हो रहा है ?”
चंदन का लेप इत्र की खुशबू सफेद बर्फ की वादियाँ बड़े बड़े देवदार एवं नीलीगिरी के वृक्ष की टहनियों का बिछौना !
अहा ! लगता है यात्रा का समापन ! आरंभ से अंत या पुनः प्रारम्भ….?
अब मन भी साथ नहीं दे रहा है ! मात्र एक प्रकाशपूँज दिखाई दे रहा है !!
— आरती रॉय 

*आरती राय

शैक्षणिक योग्यता--गृहणी जन्मतिथि - 11दिसंबर लेखन की विधाएँ - लघुकथा, कहानियाँ ,कवितायें प्रकाशित पुस्तकें - लघुत्तम महत्तम...लघुकथा संकलन . प्रकाशित दर्पण कथा संग्रह पुरस्कार/सम्मान - आकाशवाणी दरभंगा से कहानी का प्रसारण डाक का सम्पूर्ण पता - आरती राय कृष्णा पूरी .बरहेता रोड . लहेरियासराय जेल के पास जिला ...दरभंगा बिहार . Mo-9430350863 . ईमेल - arti.roy1112@gmail.com