सामाजिक

नागालैंड की सेमा जनजाति

सुमी या सेमा नागालैंड की प्रमुख जनजातियों में से एक है। इस जनजाति के लोग ज्यादातर नागालैंड के मध्य और दक्षिणी क्षेत्रों में रहते हैं I मुख्य रूप से सेमा जनजाति का निवास स्थान जुन्हेबोतो जिला है । इसके अतिरिक्त इस समुदाय के लोग नागालैंड के दिमापुर, कोहिमा, वोखा, किफिरे, मोकोकचुंग, त्यूनसंग जिले में भी रहते हैं I असम के तिनसुकिया जिले में भी सुमी समुदाय के सात गाँव हैं I सुमी नागा जनजाति की उत्पत्ति के बारे में कहा जाता है कि खेझाकेनो गांव में इनकी जड़ें हैं जो सुमी इतिहास का केंद्र बिंदु माना जाता है। नागालैंड की प्रत्येक जनजाति के प्रवास और देशांतरण के संबंध में अनेक मिथक और किंवदंती प्रचलित हैं । सेमा समुदाय के बारे में भी लोककंठों में अनेक आख्यान उपलब्ध हैं I कहा जाता है कि सेओ इस समुदाय के पूर्वज थे I एक मिथक के अनुसार खेपीउ का एक पुत्र था जिसका नाम सोपू था, सोपू के पुत्र कोजा थे और कोजा के पुत्र का नाम रोऊ था I रोऊ के तीन पुत्र थे – सबसे बड़े ख्रिऊ (अंगामी), दूसरे लेओ (चाकेसांग) और सबसे छोटे सेओ थे जो सुमी जनजाति के पूर्वज थे । ईसाई मिशनरियों के आगमन के पहले अन्य नागा समुदायों की तरह सुमी समुदाय भी हेडहंटिंग करता था । प्रकृति पूजा सुमी समुदाय का मूल धर्म है I 20 वीं शताब्दी में बैपटिस्ट मिशनरियों के आगमन के बाद अन्य नागा जनजातियों की तरह सुमी समुदाय ने भी ईसाई धर्म को अपना लिया I अब 99% सुमी ईसाई धर्म अपना चुके हैं। अब बहुत कम लोग प्रकृतिवाद में विश्वास करते हैं। सेमा के दो गोत्र हैं – स्वू (सुमी) और तुकू (तुकुमी) I भिन्न गोत्र होने के कारण दोनों के अनुष्ठानों में भिन्नता है। सेमा के प्रमुख हथियार भाला और दाव हैं । इनके रक्षात्मक हथियार ढाल है । सुमी नागा दो प्रमुख त्योहार मनाते हैं – तुलुनी और अहुना I तुलुनी प्रत्येक वर्ष 8 जुलाई को मनाया जाता है I चावल निर्मित मदिरा पीना – पिलाना इस त्योहार का अनिवार्य अंग है I चावल की बीयर बांस से बने गेबलेट में परोसा जाता है। इस पेय को ‘तुलुनी’ कहा जाता है जिसके आधार पर इस त्योहार का नामकरण हुआ है। तुलुनी को “अन्नी” भी कहा जाता है I यह त्योहार नागालैंड के सुमी समुदाय के लिए सांप्रदायिक सौहार्द और भाईचारे का त्योहार है। सुमी समुदाय का यह सबसे भव्य और महत्वपूर्ण त्योहार है । सूअर, गाय और मिथुन की बलि इस त्योहार का महत्वपूर्ण अनुष्ठान है। इस त्योहार में खाद्य पदार्थों के साथ उपहारों का आदान -प्रदान होता है । दुल्हन के निवास पर रात्रिभोज के लिए आमंत्रित किया जाता है। दूल्हा और दुल्हन दोनों के परिवारों के बीच भी खाद्य पदार्थों का आदान-प्रदान किया जाता है I खाद्य पदार्थों और पके हुए मांस को पारंपरिक तरीके से केले के पत्तों में लपेटा जाता है । पुराने जमाने में नौकरों और महिलाओं के लिए भी यह खुशी का समय होता था। इस दिन उन्हें अच्छे भोजन और उपहार दिए जाते थे । किसानों के लिए तुलुनी एक विशेष समय है क्योंकि वे अपने धान के खेतों में कड़ी मेहनत करने के बाद आराम करने और जश्न मनाते हैं। इस त्यौहार के लिए किसान आपस में चंदा एकत्रित करते हैं और उस पैसे से सूअर और गायों की खरीद कर उनका वध करते हैं और मांस को आपस में समान रूप से बांटा जाता है I लोकगीतों और गाथागीतों की प्रस्तुति इस त्योहार की अप्रतिम विशेषता है । आधुनिक समय में सुमी समुदाय के लोग अन्य जनजातियों और समुदायों के दोस्तों और सदस्यों को भी दावत में शामिल होने के लिए आमंत्रित करते हैं I विभिन्न पारंपरिक गीतों और नृत्यों के साथ आमंत्रित अतिथियों एवं ग्रामवासियों का मनोरंजन किया जाता है और उन्हें सुमी खाद्य पदार्थ के साथ स्मोक्ड पोर्क परोसे जाते हैं। अहुना सेमा जनजाति का एक अन्य महत्वपूर्ण त्योहार है I यह 14 नवंबर को मनाया जाता है I सुमी समुदाय फसल कटने के बाद यह त्योहार मनाता है I इस अवसर पर अच्छी फसल के लिए ईश्वर को धन्यवाद दिया जाता है I यह ईश्वर को कृतज्ञता अर्पित करने का त्योहार है I नए साल में सौभाग्य की कामना से देवी – देवताओं का आह्वान किया जाता है । इस अवसर पर पूरे समुदाय के लिए बांस के पात्रों में पहली फसल का चावल पकाया जाता है और सामुदायिक भोज दिया जाता है । अहुना 13 और 14 नवंबर को मनाया जाता है और इसे सुमी नागाओं के आधिकारिक त्योहार का दर्जा दिया गया है I अहुना पारंपरिक कृषि-कैलेंडर के अंत में आयोजित किया जानेवाला त्योहार है I कृषि कार्यों को पूरा करने के बाद हर्ष और उत्सव के साथ यह त्योहार मनाया जाता है ।

*वीरेन्द्र परमार

जन्म स्थान:- ग्राम+पोस्ट-जयमल डुमरी, जिला:- मुजफ्फरपुर(बिहार) -843107, जन्मतिथि:-10 मार्च 1962, शिक्षा:- एम.ए. (हिंदी),बी.एड.,नेट(यूजीसी),पीएच.डी., पूर्वोत्तर भारत के सामाजिक,सांस्कृतिक, भाषिक,साहित्यिक पक्षों,राजभाषा,राष्ट्रभाषा,लोकसाहित्य आदि विषयों पर गंभीर लेखन, प्रकाशित पुस्तकें : 1.अरुणाचल का लोकजीवन (2003)-समीक्षा प्रकाशन, मुजफ्फरपुर 2.अरुणाचल के आदिवासी और उनका लोकसाहित्य(2009)–राधा पब्लिकेशन, 4231/1, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 3.हिंदी सेवी संस्था कोश (2009)–स्वयं लेखक द्वारा प्रकाशित 4.राजभाषा विमर्श (2009)–नमन प्रकाशन, 4231/1, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 5.कथाकार आचार्य शिवपूजन सहाय (2010)-नमन प्रकाशन, 4231/1, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 6.हिंदी : राजभाषा, जनभाषा, विश्वभाषा (सं.2013)-नमन प्रकाशन, 4231/1, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 7.पूर्वोत्तर भारत : अतुल्य भारत (2018, दूसरा संस्करण 2021)–हिंदी बुक सेंटर, 4/5–बी, आसफ अली रोड, नई दिल्ली–110002 8.असम : लोकजीवन और संस्कृति (2021)-हिंदी बुक सेंटर, 4/5–बी, आसफ अली रोड, नई दिल्ली–110002 9.मेघालय : लोकजीवन और संस्कृति (2021)-हिंदी बुक सेंटर, 4/5–बी, आसफ अली रोड, नई दिल्ली–110002 10.त्रिपुरा : लोकजीवन और संस्कृति (2021)–मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 11.नागालैंड : लोकजीवन और संस्कृति (2021)–मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 12.पूर्वोत्तर भारत की नागा और कुकी–चीन जनजातियाँ (2021)-मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली – 110002 13.उत्तर–पूर्वी भारत के आदिवासी (2020)-मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली– 110002 14.पूर्वोत्तर भारत के पर्व–त्योहार (2020)-मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली– 110002 15.पूर्वोत्तर भारत के सांस्कृतिक आयाम (2020)-मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 16.यतो अधर्मः ततो जयः (व्यंग्य संग्रह-2020)–अधिकरण प्रकाशन, दिल्ली 17.मिजोरम : आदिवासी और लोक साहित्य(2021) अधिकरण प्रकाशन, दिल्ली 18.उत्तर-पूर्वी भारत का लोक साहित्य(2021)-मित्तल पब्लिकेशन, नई दिल्ली 19.अरुणाचल प्रदेश : लोकजीवन और संस्कृति(2021)-हंस प्रकाशन, नई दिल्ली मोबाइल-9868200085, ईमेल:- bkscgwb@gmail.com