कविता

हे कृषक तुम हो महान

हे कृषक! तुम हो महान
तुम्हें नमन है
सौ सौ वंदन है,
दिन रात पसीना बहाते हो,
अन्न उपजाते हो,
राष्ट्र का पेट भरते हो
फिर भी सकुचाते हो।
अपनी बेबसी, लाचारी
सबसे छिपाते हो,
अनगिनत कष्ट सहते हो
दुश्वारियां झेलते हो,
फिर भी अपनी धरती माँ पर
अमिट विश्वास रखते हो,
हे कृषक!तुम हो महान।
श्रम,उपज का मूल्य भी नहीं पाते
खाद, बीज के लिए परेशान रहते,
बाढ़,सूखा, अकाल सहते
बेबसी, लाचारी से कितना लड़ते
फिर भी कर्तव्य नहीं भूलते,
जन जन के लिए लगे ही रहते
अन्न उपजाने का सौ सौ जतन करते,
हे कृषक!तुम हो महान।
तुम्हारी महानता का कितना बखान करें
तुम्हारा कितना गुणगान करें,
तुम्हारी खुशहाली के लिए
प्रभु का गुणगान करें,
तुम्हारी महानता पर तुम्हें
बारम्बार प्रणाम करें,
हे कृषक!तुम हो महान।
सुधीर श्रीवास्तव

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921