नशे की लत
नशे का चुंगल बड़ा भयानक,
मौत समझ इसे छोड़ दो।
नशा शरीर को नाश करें,
जीने की राह अब मोड़ दो।
याद मन में फिर से करलो,
नशा मुक्त जिंदगानी को।
खुशियाँ सबके मन मे भरता,
चारों तरफ रावानी को।
तुम ही हो आशा की किरण,
अंधेरे को दूर भगाओ।
नशा मुक्त हो देश हमारा,
जन जन में जोत जलाओ।
सादा जीवन उच्च विचार,
सबका यही एक नारा हो।
सुविचार की उपज जहाँ,
ऐसा भारत देश हमारा हो।
चाह ऊंची मंजिल की जो,
तक़दीर से धोखा आया है।
ठोकर अपने किस्मत की,
ख़ुद को समझ न पाया है।
चक्र समय ने ग्रास किया,
कालनेमी ने लिया जकड़।
ख़ामोशी की चादर ओढ़े,
मादकता ने लिया पकड़।
लाचारी अब आदत बनता,
सुरा लत पर पाओगे।
बच्चे है जो देश भविष्य के,
गुरु ज्ञान कहाँ से लाओगे।
दुनिया में हर मोल महंगी,
झूठे कसमे टीक जाता है।
घर की चूल्हा बर्तन भी,
बिना तोल बिक जाता है।
आवश्यकता की खलन जहाँ,
घर गिरवी रखा जाता है।
नशा एक दिमक की भाँति,
सुखमय जीवन खा जाता है।
भावी पीढ़ी के ख़ातिर,
मार्ग सुनिश्चित करना होगा,
नशा मुक्त हो देश हमारा,
हर बच्चों में गड़ना होगा।
तेरी रोटी तेरी किस्मत,
नशे में चुर लाचारी देखा।
नशे की आड़ में इज्जतदार,
इंसान की बेकारी देखा।
सजक रह अनमोल तू,
इच्छा शक्ति अंतर्मन जगा।
याद कर उन आदर्शो को,
दुर्व्यसन को मन से भगा।
तेरे पीछे आशाओं से,
सुंदर सा परिवार पड़ा।
नशा छोड़ इंसान बनो फिर,
देख इंसानियत साथ खड़ा।
— दिब्यानन्द पटेल