लघुकथा

फर्ज (लघुकथा)

निदा फ़ाज़ली ने कहा था-

”घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूं कर लें
किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाये.”

ध्यान से देखा जाए तो यही सच्ची इबादत है!

अब 80 साल के अब्दु ने 40 साल पहले यही किया था. अब्दु यानी केरल के वायनाड के अब्दुक्का, जिन्हें प्यार से सब अब्दु बुलाते हैं.

”बचपन के दिनों में हैंड कार्ट बनाता था अपनी मां के लिए. जब मेरे घर आया एक बच्चा रोने लगा, मैंने उसके लिए लकड़ी का एक बड़ा खिलौना बनाया, जिसे लेकर उसने रोना बंद कर दिया.” अब्दु का कहना है. यहीं से अब्दु को एक राह मिल गई.

‘’कुछ लोग मेरे द्वारा बनाए गए खिलौने देखने के बाद कहते हैं कि मैं पढ़ा-लिखा होता तो इंजीनियर बन सकता था.” घर में ही वर्कशॉप खोलकर ट्रैक्टर, एयरप्लेन, ऑटोरिक्शा, लॉरी, बस ये सब बनाने वाले अब्दु का कहना है.

”आजकल तो प्लास्टिक के खिलौनों का जमाना है, फिर भी आप लकड़ी के खिलौने क्यों बनाते हैं?” अब्दु से अक्सर पूछा जाता है.

”इको फ्रेंडली.” अब्दु का छोटा-सा जवाब होता है, ”आखिर पर्यावरण को प्रदूषण से मुक्त रखने के लिए हमारा भी कुछ फर्ज बनता है.” फर्ज निभाने की संतुष्टि अब्दु के चेहरे को नई आभा दे देती है.

”बच्चों को प्लास्टिक के जहर से बचाना होगा, तो लकड़ी के खिलौने बनाने ही होंगे और लकड़ी की खपत अधिक होगी तो लकड़ी के लिए अधिक पेड़ लगाने ही होंगे.” अब्दु की ”इको फ्रेंडली”संकल्पना में हमारे लिए भी फर्ज का संदेश निहित है.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “फर्ज (लघुकथा)

  • लीला तिवानी

    दुनिया-देश-समाज-घर-पर्यावरण के लिए हमारे कुछ फर्ज होते हैं, जिनको हमें निभाना चाहिए. हम में अगर हर एक अपना फर्ज निभाएगा, तो दुनिया-देश-समाज-घर-पर्यावरण में शांति-प्रेम-अनुशासन-सहिष्णुता-निर्मलता का अखंड राज्य स्थापित हो जाएगा

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