कविता

आ ही आ

हे जगत जननी माँ
हे अम्बे हे जगदम्बे
जय जग जननी माँ
अब तो आ ही जा,
धरती पर देख कितना
अनाचार, अत्याचार
दुराचार, भ्रष्टाचार
बढ़ता जा रहा है।
तेरे ही रूपों का
शोषण बढ़ रहा
बच्चियां, बेटियां
असुरक्षित हैं,
आज की औलादों से
माँ बाप उपेक्षित हैं।
हे माँ काली,अष्टभुजी
जय जग जननी माँ
अब तो आ ही जा।
भ्रष्ट नेताओं से
देश परेशान है,
दलालों से गरीब परेशान है,
लुटेरे माफियाओं से
समाज परेशान है
बिचौलियों से
किसान परेशान है।
हे माँ,अब तो आ ही जा
संकट सबके मिटा
कष्टों से मुक्ति दिला
जय जग जननी माँ
अब तू आ ही जा।
अब और न हमको रूला
जय जग जननी माँ।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921