गीतिका/ग़ज़लपद्य साहित्य

ग़ज़ल

जब बिछा के वे जाल जाते हैं
चार दाने भी डाल जाते हैं

घर का गुस्सा यहाँ तो साहिब लोग
बाबूओं पे निकाल जाते हैं

फ़ायदा लेने को सियासत में
वे तो मुद्दे उछाल जाते हैं

होते हैं आलसी यक़ीनन वे
काम जो कल पे टाल जाते हैं

लोग मतलब से अब किसी के घर
पूछने हालचाल जाते हैं

देना मुश्किल जवाब जिनके हो
ऐसे पूछे सवाल जाते हैं

श्लेष मुश्किल उन्हें हैं समझाना
भ्रम जो झूठें पाल जाते हैं

श्लेष चन्द्राकर

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