कविता

आस का दीप

तन में जब तक कि श्वास चले,
मन में अखंड विश्वास धरो,
स्थितियाँ चाहे आये विषम,
ऐ पथिक तुम किंचित न डरो,
अंतर् में आस का दीप लिए,
जीवन-पथ पर तुम बढ़े चलो।।
है समय की यह प्रकृति जानो,
है इष्ट कभी और अनिष्ट कभी,
न इष्ट में तुम खुद को भूलो,
न अनिष्ट में तुम खुद से भागो,
अंतर् में आस का दीप लिए,
जीवन-पथ पर तुम बढ़े चलो।।
जीवन अनवरत ही चलता है,
कब समय एक सा रहता है,
विपदायें आती जाती हैं,
विपदाओं से तुम रार करो,
अंतर् में आस का दीप लिए,
जीवन-पथ पर तुम बढ़े चलो।।
जीवन में हो कितनी भी तपन,
और मार्ग तुम्हारा हो दुर्गम,
ना निराश हो, न हताश हो,
नव स्वप्न का तुम विस्तार करो,
अंतर् में आस का दीप लिए,
जीवन-पथ पर तुम बढ़े चलो।।
प्रियंवदा तिवारी

प्रियंवदा तिवारी

भोपाल