कविता

लंका दहन

सच ये नहीं कि
सीता जी से मिलने के बाद
हनुमान जी भूखे थे,
दरअसल वे रावण से
मिलने के लिये सूख रहे थे।
अशोक वाटिका में जाना
फल कम खाना
उत्पात ज्यादा मचाना
उनकी बेचैनी थी,
रावण से मिलने की
उन्हें बड़ी जल्दी थी।
राक्षसों और अक्षय कुमार का वध
तो बस नमूना था,
असल मकसद तो
रावण तक पहुंचना था।
तभी तो मेघनाद के
ब्रह्मफांस में
आसानी से बंध गये,
और रावण से मिलने पर
मन ही मन बहुत खुश हुए।
रावण को समझाना भी
मात्र बहाना था,
असल मकसद तो
रावण को भड़काना था,
अपनी ताकत का भान कराना था।
आखिरकार रावण भड़क ही गया,
उनकी पूँछ में
आग लगाने का आदेश दे गया,
हनुमान को तो जैसे
राम की महिमा दिखाने
सुगम मार्ग मिल गया।
वे बड़े प्यार से अपनी पूँछ बढ़ाते गये
पूँछ में केरोसिन से भीगे कपड़ें
लिपटवाते गये,
मंद मंद रावण की मूर्खता पर
मुस्कराते रहे।
फिर तो वे उड़े कि उड़ते ही रहे
लंका के कोने कोने में
आग लगाते फिरते रहे।
विभीषण के घर को छोड़
सबकुछ जला डाला,
फिर समुद्र में कुछ
अपनी पूँछ की आग को बुझा डाला।
उनका मकसद पूरा हो गया
सीता जी को भी अब विश्वास हो गया,
उन्हें भी जल्द मुक्ति का आभास हो गया,
रावण के क्रोध का तापमान बढ़ गया,
मगर अंदर ही अंदर
अपनी मृत्यु के निकट होने का
अहसास भी हो गया।
ये है रावण के लंका
दहन की कहानी,
जिसे दुनिया जानती है जुबानी।
🖋 सुधीर श्रीवास्तव

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921