कविता

कुम्हार

दीवाली आ रही है
कुम्हारों के चाक भी
इज्ज़त पाने लगे हैं।
अपनी रौ में खुद पर
इठलाने लगे हैं,
अपनी धुरी पर
कुम्हारों के इशारों पर नाचने लगे।
कुम्हार भी अब व्यस्त हो गया
दिया,करवा, घंटियां, गुल्लक का
माँग जो बढ़ गया।
अब कोई क्या करे
इतनी मँहगाई जो है,
मेहनत तो करना ही है
दीवाली आखिर कुम्हार को भी
तो मनाना है,
उसे भी तो लक्ष्मी गणेश
खील,बताशे, लइया,गट्टा, मिठाई
मोमबत्ती, तेल,बत्ती और
बच्चों के लिए पटाखे लेने हैं,
आखिर त्योहार की
औपचारिकता भी तो
निभानी ही है।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921