कविता

अपनत्व की पंखुड़ियां

चलता है वह खूबसूरत एहसास लेकर,
कीचड़ के छीटे गिरते उसी पर!
चलता है वह रंगों का गुलाल लेकर,
कालिख के रंग उड़ते उसी पर!
चलता है वह भरोसे के रोशन दिए लिए,
षड्यंत्रो की आंधियां रहती उसी पर!
चलता है वह अपनत्व की पंखुड़ियां लिए
कांटे बिखेर दिए जाते हैं उसी पर!
चलता है वह मुस्कुराहटों की चादर ओढ़कर,
कड़वाहटें उड़ेल दी जाती है उसी पर!
चलता है वह एक अलग तस्वीर का सपना लिए,
धमकियां देकर कैनवास गिरा दिया जाता,क्यों उसी पर!
— मीना सामंत 

मीना सामंत

कवयित्री पुष्प विहार,एमबी रोड (न्यू दिल्ली)