लघुकथा

लोग क्या कहेंगे

एक ही विभाग में काम करने वाले मोहन बाबू और सुधीर जी में गहरी मित्रता थी। जब मोहन बाबू के यहां बेटी ने जन्म लिया तब सुधीर जी ने बधाई देते हुए कहा था- “बधाई हो, घर में लक्ष्मी आई है।” और बातों ही बातों में सुधीर जी ने कह दिया-  “मोहन बाबू, बेटी की शादी की चिंता मत कीजिएगा, आपकी बेटी के साथ मैं अपने बेटे का ब्याह करा दूंगा।” मजाक-मजाक में कहीं गई बात पर मोहन बाबू ने तब हाथ जोड़कर सुधीर जी का आभार प्रकट किया और बात आई-गई हो गयी। फिर सुधीर जी का दूसरे शहर में स्थानान्तरण हो गया और दोनों दोस्तों का मिलना-जुलना कम हो गया।

मोहन बाबू की बेटी पूजा ने कम्प्यूटर इंजीनियरिंग का कोर्स पूरा कर लिया और उधर सुधीर जी का बेटा राजू भी एक प्रतिष्ठित कंपनी में इंजीनियर के पद पर कार्यरत हो गया। मोहन बाबू को अपनी बेटी के ब्याह की चिन्ता सताने लगी। पता नहीं सुधीर जी को वर्षों पहले किया गया अपना वादा याद भी होगा या नहीं….वे शादी के लिए तैयार भी होंगे या नहीं…. तरह-तरह के सवाल मोहन बाबू के मन में उपजने लगे। अंततः वे ब्याह की बात करने के ख्याल से सुधीर जी के घर गए।
वर्षों बाद दोनों दोस्त गले मिले और इधर-उधर की ढेर सारी बातें हुई। मोहन बाबू कुछ देर बाद अपनी बात रखते हुए बोले- “भाई साहब, मेरी बेटी कम्प्यूटर इंजीनियरिंग का कोर्स पूरा कर चुकी है और ईश्वर की दया से राजू बाबू भी अच्छी नौकरी कर रहे हैं। अब हमें दोनों की शादी कर देनी चाहिए।”
छूटते ही सुधीर जी बोले- “अरे मोहन बाबू, पूजा हमारी बेटी है। हम उसे घर में बहू नहीं बेटी बनाकर लायेंगे। मुझे अपना वादा अच्छी तरह याद है।”
मोहन बाबू को लगा कि सचमुच उनकी बेटी बहुत भाग्यशाली है वर्ना आजकल योग्य वर की तलाश में दर-दर भटकते हुए लड़की के पिता की चप्पलें घिस जाती हैं। मोहन बाबू सकुचाते हुए बोले- “सुधीर जी, जो दुनियादारी है हम उसे पूरी तरह निभाएंगे। हमारे भी अरमान हैं, हम अपनी बेटी को खाली हाथ नहीं….”
बीच में ही बात काटते हुए सुधीर जी बोले- “मोहन बाबू, आपको तो मालूम ही है कि राजू दहेज के बिल्कुल खिलाफ है। इसलिए आप निश्चिंत रहिए और धूमधाम से शादी की तैयारी कीजिए। हम दोस्त के साथ-साथ समधी भी तो हो गए। आपकी इज्जत अब हमारी इज्जत है।
मोहन बाबू चैन की सांस लेते हुए सोचने लगे कि मानवता आज भी दुनिया में जीवित है। दोपहर का खाना खाकर जब उन्होंने लौटने की इच्छा प्रकट की तब सुधीर जी ने कहा- “मोहन बाबू, दहेज के तो हम बिल्कुल खिलाफ हैं। हां लड़के के एक-दो शौक हैं, उसे आप जरूर पूरा कर दीजियेगा।”
मोहन बाबू ने जानने की गरज से पूछा- ” हां हां….क्यों नहीं।”
सुधीर जी बोले- “देखिए, आजकल लड़का यदि चपरासी की नौकरी भी करता हो तो उसकी कीमत चार-पांच लाख होती है, फिर हमारा लड़का तो इंजीनियर है। लेकिन इसके बावजूद हम दहेज की डिमांड नहीं कर रहे हैं। सिर्फ लड़के की पसंद की कार दे दीजिएगा, लगभग बीस लाख की होगी। बाकी आप जो चाहें, क्योंकि आपको तो अपनी बेटी और अपने दामाद को ही देना है।”
मोहन बाबू को झटका सा लगा, फिर भी उन्होंने कहा- “जी….जी हां….।” सुधीर जी ने बात जारी रखते हुए कहा- ” और देखिए, जब हम दहेज नहीं ले रहे हैं तब कम से कम बारात का खर्च, गहने, रिसेप्शन आदि का खर्च कुल मिलाकर बीस लाख दे दीजियेगा। क्योंकि हम बेटे की शादी कर रहे हैं, अपनी तरफ से पैसा लगायेंगे तब लोग क्या कहेंगे…”
— विनोद प्रसाद

विनोद प्रसाद

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