कविता

उधार देकर परेशान न हो!

किसी को भी अगर, देना पड़े उधार,
उधार की वापसी, न बने, मन का भार !
उधार लेने वाला, होगा अगर ईमानदार,
नियत समय पर, होगा, देने को तैयार!
मेरा अनुभव, मुझे यह बताता है,
रिश्तेदार ही, इस हालत में सताता है !
जो रिश्तेदारी में नहीं आता,
वह तो समय पर, उधारी चुकाता है!
रिश्तेदारों की, संभव हो तो, मदद करें,
पर जो उधार न हो, मुफ्त में ,
उधार वापसी की उम्मीद ना ही करें!
कुछ लोग, आदतन उधार मांगते हैं,
अपने विलासिता एवं इन्द्रिय सुख के लिए,
और, करते हैं खर्च, उधार वापसी की बिना चिन्ता किए!
अतः, किसी को भी, सोच समझकर दीजिएगा उधार,
और, उधार मांगने वाले को, दूर से ही कर दीजिएगा, नमस्कार!

— पद्म मुख पंडा

पद्म मुख पंडा

ग्राम महा पल्ली डाकघर लाॅइंग जनपद रायगढ़ छ ग