कविता

हलुवा चना

शुक्र है रब दा
खिलवाया आज कड़ा चने का नाश्ता
जिन हाथों ने इसे बनाया
कारीगरी बहुत है उसके हाथ में
मौज हो गई
तृप्ति हो गई
आहा गरम गरम रवे का हलुआ
केसरिया रंगत लिए हुए
मीठा मीठा मुंह में रस घोले
बादाम है इसमें
किशमिश इसमें
गोला कटा हुआ टुकड़ों में
इतराती पड़ी चिरोंगी
गोल गोल नन्हीं नन्हीं
चना बना है आला इसमें पड़ा गरम मसाला
उपर से हरी मिर्च धनिया का पुट है
खाकर इसको आज तो हो गई
अपनी बल्ले बल्ले

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020