मुक्तक/दोहा

रह जाते बेनाम

होते है बस नाम के, रह जाते बेनाम ।
रिश्ते इंटरनेट के , आते कब हैं काम ।।

जबरन पकडे हाथ से, धागे ये कमजोर।
मन में आप विचारना, जाओगे किस ओर ।।

चैट वैट के जाल मेंं, प्रिय खुद को मत फांस ।
झूठ मूठ के मोह से , करना क्यों है आस ।।

मतलब का संसार ये, मतलब का है यार।
मतलब से ही जान लो, रिश्ता है या प्यार ।।

— साधना सिंह

साधना सिंह

मै साधना सिंह, युपी के एक शहर गोरखपुर से हु । लिखने का शौक कॉलेज से ही था । मै किसी भी विधा से अनभिज्ञ हु बस अपने एहसास कागज पर उतार देती हु । कुछ पंक्तियो मे - छंदमुक्त हो या छंदबध मुझे क्या पता ये पंक्तिया बस एहसास है तुम्हारे होने का तुम्हे खोने का कोई एहसास जब जेहन मे संवरता है वही शब्द बन कर कागज पर निखरता है । धन्यवाद :)