कविता

2020 का जलवा

2020 तुम जा रहे हो तो मुझे तुमसे कुछ कहना है
तुम औरों से थोडे अलग थे, वाकई अलग,
जैसा कभी किसी ने नही सोचा था,
खाली सड़कें, खाली शहर देख कर
मन मे बार बार इक सवाल ही उठता था,
ऐसा भी हो सकता है?
कैसे सारी दुनिया पर विराम लग गया
जैसे भगवान ने विराम का बटन दबा दिया,
प्रदूषण के कारण मास्क पहले भी पहनना चाहते थे,
हाथ तो पहले भी साफ रखने ही थे,
बेमतलब की पार्टी तो पहले भी रोकनी ही थी,
आज नही तो कल दुनिया को डिजिटल तो होना था
बस तुमने डरा धमका कर वहीं करवा दिया
गरीबों की सोचो तो बहुत दर्द होता था
उनकी कोई लम्बी बचत नही थी,
उन्हें तो रोज कमाना और खाना था,
इसलिए सवाल था कि भूखे पेट कैसे सोना था
कुछ साथी ऐसे बिछड़े कि विश्वास आज भी नही होता
परिवार पहले भी था मगर सही मायने मे
उनके साथ हुआ है रहना,
सालों से दूर रहते बच्चों से हुआ है मिलना
घर बैठे छुट्टियों का आनन्द लेना तुमने सिखा कर,
कम कमाई, कम खर्च में बेहतर जीना तुमने बताया है
Dear 2020 तुम इतने बुरे भी नही थे, बस अलग थे ..

— सुमन “रुहानी”

सुमन राकेश शाह 'रूहानी'

मेरा जन्मस्थान जिला पाली राजस्थान है। मेरी उम्र 45 वर्ष है। शादी के पश्चात पिछले 25 वर्षों से मैं सूरत गुजरात मे रह रही हुँ । मैंने अजमेर यूनिवर्सिटी से 1993 में m. com किया था ..2012 से यानि पिछले 6 वर्षों कविताओं और रंगों द्वारा अपने मन के विचारों को दूसरों तक पहुचने का प्रयास कर रही हुँ। पता- A29, घनश्याम बंगला, इन्द्रलोक काम्प्लेक्स, पिपलोद, सूरत 395007 मो- 9227935630