कविता

लट्टू दीवाने

तब सचमुच में

‘मेला’ होता था,

अब तो वह सिर्फ

ठेलमठेला है!

तब मुझे ‘लट्टू’

बहुत पसंद होता था,

यही कारण

अबतक

मुझपर

कोई लड़कियाँ

‘लट्टू’ नहीं हुई हैं!

‘गेंद’ भी पसंद था,

लेकिन खिलाड़ी

नहीं बन सका!

छोटी फटफटिया

पसंद था,

लेकिन इस पटाखा को

ईंट से पीटकर भी

फोड़ डालते थे!

अफसोस है,

जो चीज वहाँ

नहीं मिलती थी,

वही चीज लेकर मैं

जीवनभर के लिए

बैठ गया  हूँ

यानी कलमकार हूँ,

भाई !

मेले में

पंडाल देखकर

लगता है,

इनपर हुई खर्च पर

तो एक गरीब बस्ती की

भूख मिट सकती थी !

डॉ. सदानंद पॉल

एम.ए. (त्रय), नेट उत्तीर्ण (यूजीसी), जे.आर.एफ. (संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार), विद्यावाचस्पति (विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ, भागलपुर), अमेरिकन मैथमेटिकल सोसाइटी के प्रशंसित पत्र प्राप्तकर्त्ता. गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स होल्डर, लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स होल्डर, इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, RHR-UK, तेलुगु बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, बिहार बुक ऑफ रिकॉर्ड्स इत्यादि में वर्ल्ड/नेशनल 300+ रिकॉर्ड्स दर्ज. राष्ट्रपति के प्रसंगश: 'नेशनल अवार्ड' प्राप्तकर्त्ता. पुस्तक- गणित डायरी, पूर्वांचल की लोकगाथा गोपीचंद, लव इन डार्विन सहित 12,000+ रचनाएँ और संपादक के नाम पत्र प्रकाशित. गणित पहेली- सदानंदकु सुडोकु, अटकू, KP10, अभाज्य संख्याओं के सटीक सूत्र इत्यादि के अन्वेषक, भारत के सबसे युवा समाचार पत्र संपादक. 500+ सरकारी स्तर की परीक्षाओं में अर्हताधारक, पद्म अवार्ड के लिए सर्वाधिक बार नामांकित. कई जनजागरूकता मुहिम में भागीदारी.