हमारी बेटी
बजी खुशियों की शहनाई
जब वह दुनिया में आई |
जन्म उसका लड़की का
फिर भी अभिशाप कहलाई ||
उसे देख कर क्यों
सबकी आंखें हैं भर आई |
लड़का मांगा था उन्होंने
और वह बदनसीब ही बन पाई ||
पापा, बोले बेटा आता
छंद पैसे घर लाता |
परंतु लड़की है आई
अब इसकी करूं मैं भरपाई ||
उसके हर पहनावे पर
सब ने उंगली उठाई |
उसे आगे पढ़ने की
इजाज़त भी ना मिल पाई ||
ज़िद्दी वह बड़ी
इसीलिए हार ना मानी |
कुछ कर दिखाने की
उसने शपथ थी खाई ||
सब के विरुद्ध जाकर अपने
पैरों पर खड़ा हो दिखाया |
व हर बुरे हालात से
अपने परिवार को बचाया ||
अभिमान तब हुआ
जब पापा ने कहा |
बेटी ही सही मायने
में बेटा बन दिखाई ||
बेटी जीवन का आधार है
सुखों का संसार है |
सकारात्मक का किताब है
अच्छे कर्मों का भाग है ||
वह दुर्गा भी है काली भी
अज्ञान का विनाश है |
सबकी सेवा जो करती
वह ममता का भंडार है ||
वह हर ऊंचाइयों पर पहुंचती
जीतती हर किताब है |
बस निर्भया बनना ही
हर बेटी के इच्छा के खिलाफ है ||
रमिला राजपुरोहित