गीत/नवगीतपद्य साहित्य

चाह नहीं तुमसे कुछ पाऊँ

चाह नहीं तुमसे कुछ पाऊँ।
चाह रही, तुमको सुन पाऊँ।।

नासमझी में ठुकराया था।
अहम अधिक ही गदराया था।
अपनी चाहत समझ न पाया,
जिद ने हमको भरमाया था।
तुम्हारे बिना जिंदा रह पाऊँ?
चाह रही, तुमको सुन पाऊँ।।

षड्यंत्रों में घिरे आज हैं।
कुटिल कामिनी रचे राज है।
कपट जाल में फंसाया ऐसा,
जीवन के ना रूचें साज हैं।
प्रेम के गान अब, किसे सुनाऊँ?
चाह रही, तुमको सुन पाऊँ।।

सीधी सच्ची राह थी तेरी।
माँग नहीं थी, कोई घनेरी।
मन से मन की नहीं सुन सका,
अब तो बहुत हो गई देरी।
अब भी गीत तुम्हारे गाऊँ।
चाह रही, तुमको सुन पाऊँ।।

डॉ. संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी

जवाहर नवोदय विद्यालय, मुरादाबाद , में प्राचार्य के रूप में कार्यरत। दस पुस्तकें प्रकाशित। rashtrapremi.com, www.rashtrapremi.in मेरी ई-बुक चिंता छोड़ो-सुख से नाता जोड़ो शिक्षक बनें-जग गढ़ें(करियर केन्द्रित मार्गदर्शिका) आधुनिक संदर्भ में(निबन्ध संग्रह) पापा, मैं तुम्हारे पास आऊंगा प्रेरणा से पराजिता तक(कहानी संग्रह) सफ़लता का राज़ समय की एजेंसी दोहा सहस्रावली(1111 दोहे) बता देंगे जमाने को(काव्य संग्रह) मौत से जिजीविषा तक(काव्य संग्रह) समर्पण(काव्य संग्रह)