कुंडलियाँ
रिश्तों से जिस-दिन मरे, प्रेम और विश्वास।
फिर उस रिश्ते में कहां, रह जाता अहसास।।
रह जाता अहसास, निभाते बे-मन उसको।
होता कष्ट अपार, दोष दें आखिर किसको।।
कहता ‘शिव’ दिव्यांग, गले जीवन किस्तों में।
वैमनस्य का भाव, पनपता जब रिश्तों से।।
शिवेन्द्र मिश्र ‘शिव’