क्षणिका
यह अजीबोग़रीब स्थिति है
कि सबकोई क्यों ‘पलवा’ के
” ” चाट रहे हैं !
क्या-क्या चाटने-चटवाने ?
चटनी की यारी लिए
यानी
संभ्रांत जाति की बोल !
××××
ट्रैफ़िक पेनाल्टी पर
श्री नीरज नीर–
‘मुर्दे चद्दर तान के,
सोते हैं चुपचाप;
जैसा जी में आए,
नियम बनावें आप !’
××××
दौड़ा-दौड़ा कर मारेंगे
कि ” ” लाल कर देंगे !
क्यों बाबा,
क्यों ऐसा करेंगे ?
एक कुलीन जाति की बोल !
××××
पीठ पीछे पाल को
‘पलवा’ कह ही देता है !
पर छात्रजीवन में
मित्र सामने कहते-
झा को झौआ,
मिश्र को मिश्री,
सिंह को सिंघी,
यादव को जद्दु !
××××
स्कूल में सीएल
बचाने के लिए होती–
मारा-मारी,
गाली-गलौजियाँ;
वहीं ‘अवैतनिक’ में जाना ही है
मर्द की बात,
पर जो मर्द नहीं हो, तब !