कविता

दिव्य दृष्टि

मैं जहां देखता हूं
मुझे तुम ही नजर आती हो,
कभी दुर्गा बन
सिंह पर सवार
हँसती मुस्कुराती हुई,
तो कभी महाकाल के
वक्ष स्थल पर पांव रख
महाकाली बन
अट्हास करती हुई।
कभी सुना है तुझे
मंदिर की गूँजती घण्टियों  में
हूँ हूँ का नाद करते हुए।
कभी महसूस किया है
तुमको बहती हल्की
नम हवाओं में
संपूर्ण विश्व का
ध्यान करते हुए।

— राजीव डोगरा ‘विमल’

*डॉ. राजीव डोगरा

भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा कांगड़ा हिमाचल प्रदेश Email- Rajivdogra1@gmail.com M- 9876777233