गीतिका/ग़ज़ल

छोटी सी बात

छोटी सी बात क्या हम नहीं समझ सकते?
हमें आपस में लड़ा कर वो लूटते हैं मज़ा
हम उनकी ये साज़िश को पढ़ नहीं सकते?
हमारी तरक्की के तेज से जलते हैं वो लोग
हमें हँसता हुआ वो कभी देख नहीं सकते
ये देश अब चल पड़ा है एक नई सी राह पर
वो अब ये रफ्तार को कभी रोक नहीं सकते
हमें अपनी ही राह में बाधा कभी नहीं बनना
गैरों में हिम्मत कहाँ कि मंज़र वो बदल सकते?
ख़्वाबों से सजा है आसमान,अब नींद गुम है
उसे हक़ीक़त बनाए बग़ैर हम सो नहीं सकते
‘तेरे मेरे ‘ के जाल में न उलझ के रह जाएँ हम
साथ चले बग़ैर हम मंज़िल को पा नहीं सकते
— आशीष शर्मा ‘अमृत ‘

आशीष शर्मा 'अमृत'

जयपुर, राजस्थान