सामाजिक

व्यक्ति निर्माण से सृष्टि निर्माण

हम सभी को अच्छी तरह से इस पता है कि हम अखिल संसार की मात्र एक इकाई भर हैं। ऐसे में अधिक नहीं लेकिन एक इकाई के रुप में हमारी जिम्मेदारी बनती है कि परिवार, समाज, राष्ट्र, संसार और ब्रहांड के प्रति अपने अपने कर्तव्य निभाने की।जिसकी शुरुआत हमें खुद से करनी है।एक व्यक्ति के रूप में सबसे पहले हमें अपने निर्माण यानी व्यक्ति निर्माण के प्रति सचेत होना. है। क्योंकि संसार में एक एक व्यक्ति से ही परिवार, समाज, राष्ट्र ,संसार और सृष्टि के निर्माण के सूत्र बँधे हैं।जब हमारा निर्माण होगा। तब उसका असर सभी ओर प्रज्वलित होगा। हम ही नहीं,पूरी सृष्टि का निर्माण स्वत: प्रभावित होगी, जिसका प्रभाव भी हमें स्पष्ट दिखता नजर आ भी रहा है और आगे भी आता रहेगा। हमारे खुद के निर्माण से हमारे परिवार से लेकर सृष्टि तक के निर्माण में हमारी ही केंद्रीय भूमिका है। ऐसे में स्वाभाविक रूप से यदि व्यक्ति यानी हम सिर्फ़ अपने ही निर्माण पर ध्यान दें,तो बाकी का स्वतः हो जायेगा। ईश्वर का हर निर्माण आवश्यकतानुसार ही है।मानव, पशु, पक्षी, जीव, जंतु, पेड़, पौधे और प्रकृति आदि का निर्माण निर्रथक नहीं हैंं। सबकी उपयोगिता है,किसी की लुप्तता संतुलन बिगाड़ने के लिए पर्याप्त है। चींटी भी कि न किसी रूप में प्रकृति और संतुलन के लिए आवश्यक है।
ऐसे में हमारा दायित्व बनता है कि
हम प्रकृति से खिलवाड़ किये बिना हर एक जीव को अपना यथोचित कार्य सुगमता, भय और स्वच्छंदता से करने दें और अपने स्वयं के निर्माण की प्रक्रिया में लगे रहें।तभी परिवार, समाज, राष्ट्र, समाज और संसार का निर्माण संभव है।अन्यथा इसका प्रथम कोपभाजन हमें ही बनना होगा।जिसके उत्तरदायी भी हम स्वयं होंगे।

*सुधीर श्रीवास्तव

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