कहानी

एक अधूरी कहानी

निहारिका नाम था उसका। पता नहीं उस में ऐसी क्या बात थी, जो मुझे अपनी ओर पर बस आकृष्ट कर रही थी। हमारे ऑफिस से अक्सर वृद्धाश्रम, अनाथालय दिव्यांगों के यहां हर महीने दौरा करना होता था।उनका मनोबल बढ़ाने के लिए उनके हस्त से निर्मित वस्तुओं को बहुत बढ़ावा दिया जाता था। या यूं कह सकते हैं उस कंपनी ने एक अनाथालय एक वृद्ध आश्रम और एक दिव्यांग आश्रम को गोद लिया था। तो हम सभी अपने नियत कार्यक्रम के अनुसार वृद्ध आश्रम दिव्यांग आश्रम और अनाथालय गये। वहां की संचालिका ने हमें सब बच्चों से मिलवाया। अचानक उस संचालिका ने एक बच्ची को आवाज लगाया निहारिका, वह बच्ची आई। उसके पास फिर उन्होंने पूछा बेटे क्या तुम ने दूध पिया अपना होमवर्क तैयार किया। उसने बिना कुछ कहे मेरी और अपलक देखे जा रही थी। पता नहीं उसकी नजरों में क्या खास बात थी, क्या मासूमियत थी, उसमें जो मैं सारे रास्ते वापस आने तक उस चेहरे को भुला नहीं पाई। घर आने के बाद भी निहारिका ही नैनों में थी। खैर किसी तरह ऑफिस जाना शुरू हुआ और 1 महीने के बाद दोबारा सिर्फ ट्रिप बना अनाथालय जाने का। उसमें हमारा नाम नहीं था मैंने बहुत प्रार्थना करके अपना नाम उस समूह में डलवाया। आज फिर निहारिका मेरी आंखों में मेरे मन में विचार आने लगी। मुझे तो सिर्फ अनाथालय ही जाना था वहां पहुंची तो मेट्रेन ने कहा अच्छा हुआ कि आप आई। मैं आपसे एक बात बताना चाहती हूं, जिस दिन से आप गई हैं निहारिका से मिलकर वह हर दिन कॉरिडोर में 10 मिनट रुक कर आपकी तस्वीर को देखती है उसे छुती है। पता नहीं उसके मन में आपके प्रति क्या भावनाएं हैं। है तो वह सिर्फ 5 वर्ष की। मैं बता नहीं सकती कि उसकी सोच क्या है। लेकिन कुछ है उसके अंतर्मन में आपके प्रति। मेरी भी यही दशा थी मुझे लगा यह ईश्वर की कोई अनुपम सौगात है शायद। मेरे लिए फिर उसे बुलाया गया निहारिका को आज। वह मेरे थोड़ा और करीब आई मुझे धीरे से छुआ मेरे गालों को और फिर चली गई। अब तो मेरे अंतःकरण में वह जैसे रच बस गई। फिर हमने उसे गोद लेने का फैसला किया। गोद लेने के लिए जिन जिन गतिविधियों से जाना पड़ता है, सारा कार्यक्रम हमने पूरा किया। अब दिन था मेरी परी को घर लाने का, मैंने अपनी गाड़ी को फूलों से बलून से सजाया और पहुंच गई नन्ही परी को लाने। लेकिन संचालिका का चेहरा बड़ा ही गमगीन था।मैंने पूछा क्या बात है। आप कुछ खामोश है, उसने कहा मैं निहारिका को जीवित नहीं दे पा दे सकती, क्योंकि कल रात ही उसने अपना दम तोड़ दिया, लेकिन मैंने आप दोनों का आकर्षण देखा था, एक दूसरे के प्रति। इसलिए अगर आप चाहें तो इसका दाह संस्कार आप कर सकती हैं। मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई मुझे क्या पता था जिस सजी हुई गाड़ी में मैंने निहारिका को लाने का सपना संजोया था उस गाड़ी से मैं उसे दफनाने जाऊंगी।
यह मेरी कहानी अधूरी ही रह गई। आज भी मन अत्यंत द्रवीभूत हो जाता है। ऐसा क्या रिश्ता था जो मुझे, मेरे हृदय को भीतर तक रुला के रख दिया। कहा जाता है किसी के बिना कुछ रुकता तो नहीं। लेकिन इतना भी तय है किसी की कमी को पूरा भी नहीं किया जा सकता। मेरा थोड़े दिन का स्नेह उस बच्ची के प्रति पता नहीं इसे क्या शब्द दिया जाए। लेकिन कुछ तो था। यह कहानी तो अधूरी रह गई लेकिन प्यार जीवंत रह गया।

— सविता सिंह मीरा
जमशेदपुर झारखंड

सविता सिंह 'मीरा'

जन्म तिथि -23 सितंबर शिक्षा- स्नातकोत्तर साहित्यिक गतिविधियां - विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित व्यवसाय - निजी संस्थान में कार्यरत झारखंड जमशेदपुर संपर्क संख्या - 9430776517 ई - मेल - meerajsr2309@gmail.com