गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

कभी तो रात बीतेगी, कभी तो फिर सुबह होगी।
मुए इस वायरस पर भी, मनुज तेरी फ़तह होगी।

खुदा के इन्तज़ामों को, धता बतला रहे थे हम,
वबा भेजी गई है तो, वबा की कुछ वजह होगी।

ज़मीन-ओ-आसमाँ, पानी, हवा, सब कर दिया दूषित,
किसी बीमार को हासिल शफ़ा फिर किस तरह होगी।

दवाएँ भी बिकेंगी ब्लैक में, मालूम था किसको,
कि अब इन्सानियत इन्सान के हाथों जिबह होगी।

अजब हालात हैं, भगदड़ मची है अस्पतालों में,
बता तो दो कि थोड़ी ऑक्सीजन किस जगह होगी।

— बृज राज किशोर ‘राहगीर’

बृज राज किशोर "राहगीर"

वरिष्ठ कवि, पचास वर्षों का लेखन, दो काव्य संग्रह प्रकाशित विभिन्न पत्र पत्रिकाओं एवं साझा संकलनों में रचनायें प्रकाशित कवि सम्मेलनों में काव्य पाठ सेवानिवृत्त एलआईसी अधिकारी पता: FT-10, ईशा अपार्टमेंट, रूड़की रोड, मेरठ-250001 (उ.प्र.)