कविता

/ कर्तव्य /

घंटिकाएँ अब
चारों ओर बजने लगीं
करोना का विकराल नृत्य
थमने का नाम नहीं ले रहा
भौतिक दूरी से अलग है
भाई – बंधु, मनुष्यगण
निर्धनों के जीवन में
निराशा की छायाएँ
घुमड़ – घुमड़कर आने लगीं
करोना के भय से
असहाय जनता हठात
अपने दम तोड़ने लगे
अस्पतालों में आम जनता की
लूटी होने लगी है
राम नाम जपने में
राजा व्यस्त हो गये
भगवान पर भरोसे में
आध्यात्मिक वाणी देने लगे
विपत्ति के इस हालात में
ईश्वर, अल्ला, ईसा, अखंड सत्ता के
करोडों देवता गण बंद कमरे में
अपना मुँह छिपे हुए हैं
मनुष्य ही सत्य है
पीड़ितों की सेवा में
अपना जान दे रहा है
वर्ण, जातीय अहंभाव
आपात काल में भी
अपना चश्मा दिखा रहा है
स्वार्थ का विकार जगह – जगह
मानवता को खाने लगा है
हम सब एक दूसरे से दूर
अस्पृश्यता की पीड़ा भोगते हैं
मनुष्य का मूल्य, समता का भाव,
सहयोग का मूल्य परंपरागत
समाजिक दूरी में ही समाहित है
मनु संतान की अज्ञानता
मस्तिष्क का अंधकार खुला नहीं है
सच का सौध देखने में
चक्षु का विकास नहीं हो पाया है।

धैर्य की जरूरत है लोगों में
भरोसा अब उनको चाहिए,
चिकित्सा की चिंता से
ऊपर उठने का मुफ्त प्रबंध,
सारा इलजाम लगाओ
मनोबल देना आवश्यक है
मरीजों का साथ देकर
मृत्यु की लपेट से बाहर लाओ
इलाज सबका हो, समान हो
श्रम जीवि को बचाने का
आवश्यक कदम उठाओ
शासन तंत्र चाटुकारिता नहीं
समाज को बचाना है,
इतिहास का नया पृष्ठ
रचने का एक फ़ुरसत है।

पी. रवींद्रनाथ

ओहदा : पाठशाला सहायक (हिंदी), शैक्षिक योग्यताएँ : एम .ए .(हिंदी,अंग्रेजी)., एम.फिल (हिंदी), पी.एच.डी. शोधार्थी एस.वी.यूनिवर्सिटी तिरूपति। कार्यस्थान। : जिला परिषत् उन्नत पाठशाला, वेंकटराजु पल्ले, चिट्वेल मंडल कड़पा जिला ,आँ.प्र.516110 प्रकाशित कृतियाँ : वेदना के शूल कविता संग्रह। विभिन्न पत्रिकाओं में दस से अधिक आलेख । प्रवृत्ति : कविता ,कहानी लिखना, तेलुगु और हिंदी में । डॉ.सर्वेपल्लि राधाकृष्णन राष्ट्रीय उत्तम अध्यापक पुरस्कार प्राप्त एवं नेशनल एक्शलेन्सी अवार्ड। वेदना के शूल कविता संग्रह के लिए सूरजपाल साहित्य सम्मान।