कविता

मति की क्षति

समय के साथ
शिक्षा,सुविधा,आधुनिकता ने
मति को क्षतिग्रस्त करना प्रारंभ किया,
बढ़ती तकनीकी सुविधाएं
हमें आलसी बना रहीं,
हमें बीमार कर रहीं
हमारी सोच,संस्कृति ही नहीं
याददाश्त पर भी प्रहार कर रहीं,
संबंधों में फासले बढा़ने के साथ
दरार भी डाल रहीं,
संबंधों की मर्यादा ही नहीं
संवेदनाओं का भी विनाश कर रहीं।
समय तेजी से भाग रहा है
अब जल्दी ही कुछ करना होगा,
मति की क्षति न होने पाये
सबको कुछ न कुछ करना होगा,
मशीन बनते जाने से बचना होगा।
वरना वह दिन दूर नहीं
जब हम मानव मशीन कहलायेंगे,
मति क्षति की समस्या ही नहीं रहेगी
क्योंकि हम मतिविहीन हो जायेंगे,
हर काम के लिए तकनीक पर ही
निर्भर होकर रह जायेंगे।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921