गीत/नवगीत

पसरा है सघन अंधेरा

अपनों के बीच सदा जो नेह लुटाते आये।
स्वारथ की खातिर सब सुख स्रोत रिझाते आये।
परिवर्तन की धारा के हैं वे विकट विरोधी,
सत्ता की चौखट पर जो शीश झुकाते आये।।
कोई धनिया पीड़ा का पर्वत काट न पाई।
गोबर की राह पर सुमन बिखेर बांट न पाई।
होरी का श्रम है बंधक लाला की पोथी में,
पीढ़ी रही छुटाती, कभी भाग्य बांच न पाई।।
झोपड़ियों में दुख-दैन्य, मधुमास कभी न आता।
पसरा है सघन अंधेरा, उजास कभी न आता।
पांच साल में जब लोकतंत्र है दस्तक देता,
जोड़े हाथ विकास तब, विश्वास कभी न आता।।
— प्रमोद दीक्षित मलय

*प्रमोद दीक्षित 'मलय'

सम्प्रति:- ब्लाॅक संसाधन केन्द्र नरैनी, बांदा में सह-समन्वयक (हिन्दी) पद पर कार्यरत। प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में गुणात्मक बदलावों, आनन्ददायी शिक्षण एवं नवाचारी मुद्दों पर सतत् लेखन एवं प्रयोग । संस्थापक - ‘शैक्षिक संवाद मंच’ (शिक्षकों का राज्य स्तरीय रचनात्मक स्वैच्छिक मैत्री समूह)। सम्पर्क:- 79/18, शास्त्री नगर, अतर्रा - 210201, जिला - बांदा, उ. प्र.। मोबा. - 9452085234 ईमेल - pramodmalay123@gmail.com